भोपाल। मप्र में 12 साल पहले कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन से जमीन पर पटक दिया गया, अगले 10 साल भी उसकी कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं का व्यवहार आज भी सत्ताधारी दल जैसा ही है। सरकार के विरोध में केके मिश्रा के प्रेसनोट आते रहते हैं लेकिन आम जनता के दर्द में शामिल होकर संघर्ष करना किसी कांग्रेसी के बूते की बात नहीं लगती।
ताजा मामला होशंगाबाद से आ रहा है। विस्थापन में हो रही गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस ने क्षेत्रीय आदिवासियों के साथ मिलकर नर्मदा में जल सत्याग्रह का ऐलान किया गया था। सत्याग्रह में भाग लेने के लिए प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया समेत अन्य नेताओं को आना था लेकिन उनका आना तो दूर जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी भी नहीं आए। प्रदेश उपाध्यक्ष रामेश्वर नीखरा जरूर आए, लेकिन वे भी महज दो मिनट घुटनों से नीचे तक पानी में रहे, आचमन किया, फोटो खिंचवाई और चलते बने। आदिवासियों ने करीब 30 मिनट जल सत्याग्रह किया।
प्रदेश स्तर पर पीसी शर्मा और कुणाल चौधरी को छोड़ दिया जाए तो कोई नेता ऐसा नहीं जो जनता के दर्द में उसके साथ शामिल होकर लड़ाई लड़ता दिखाई दे रहा हो। मप्र में गर्दन तक डूब चुकी कांग्रेस को अब केवल मीडिया ही जिंदा बनाए हुए है। कई मामले में तो मीडिया ही कांग्रेस को फीड देती है। ज्यादातर कांग्रेसियों के पास ना तो अपना कोई अध्ययन है और ना ही आम जनता के लिए दर्द। आधे से ज्यादा कांग्रेसी, भाजपाईयों के साथ मिलकर ठेकेदारी कर रहे हैं।