राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक घरेलू उत्पाद होने के बावजूद तेजस आज के दौर का अतिआधुनिक व दक्ष विमान है। यह अपने स्तर के अन्य विमानों के बराबर तो है ही, कुछ मामलों में उनसे बेहतर भी है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि डिजाइन तैयार करने से लेकर उड़ान भरने तक, इसमें इस्तेमाल ज्यादातर तकनीक हमने खुद विकसित की हैं। हालांकि कुछ उपकरण ऐसे भी हैं, जो दूसरे मुल्कों से लिए गए हैं। मगर किसी जंगी जहाज को बनाने का विचार करना, उसकी डिजाइन तैयार करना और फिर उसे खुद बना भी लेना कोई मामूली उपलब्धि नहीं है । इस सफलता के साथ अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारत एक महत्वपूर्ण ताकत के रूप में उभरा है।
तेजस की सफलता के कई अर्थ हैं। यह हमारे लिए कई रास्ते खोल रहा है। ऐसी किसी तकनीक को विकसित करने का साफ अर्थ है, दक्षता, क्षमता व ज्ञान में वृद्धि। जैसे-जैसे यह ज्ञान बढ़ता जाता है और संबंधित प्रयोग तेज होने लगते हैं, दूसरे तरह के जहाजों को विकसित करने स्वाभाविक प्रयास भी शुरू हो जाता है। ऐसे दौर में, जब भारत में उड्डयन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं दिख रही हैं और आने वाले दिनों में भारत सैन्य व असैन्य विमानों का बड़ा उपभोक्ता बनने वाला है, तब यह समझना आसान नहीं कि तेजस हमारी किस तरह मदद करेगा। यह आसानी से समझा जा सकता है कि कोई देश सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए ही किसी विमान को विकसित नहीं करता। इसके बहाने उसकी नजर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर भी रहती है। यूरोपीय देशों के मुकाबले हमारे यहां ‘कॉस्ट मैन पावर’ (श्रम-बल में लगने वाली लागत) बहुत कम है। लिहाजा तेजस हमारे लिए कई संभावनाओं के दरवाजे खोल रहा है। हम इसके माध्यम से विमानों को बनाने और उनका निर्यात करने वाले देशों में शामिल हो सकते हैं। खासकर अफ्रीकी व दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को, जिनके साथ हमारे संबंध बेहतर रहे हैं और जिनकी हम लगातार मदद भी कर रहे हैं। आने वाले दिनों में हम यह विमान उन्हें बेच सकते हैं।
इसके अलावा, भारत सैन्य व असैन्य जरूरतों के लिए विमानों की खरीदारी करने वाले देशों में आज दूसरे स्थान पर आता है। पहले पायदान पर चीन है। मगर अच्छी बात यह है कि चीन के मुकाबले हमारा बाजार कहीं ज्यादा संभावनाओं से भरा है। तेजस भारत की आंतरिक क्षमताओं को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होगा। दूसरे मुल्कों पर हमारी निर्भरता को यह काफी हद तक कम कर सकता है। मुझे याद है कि 1965 व 1971 के युद्ध में हमारे जवान कुछ विमानों का इस्तेमाल इसलिए नहीं कर पाए, क्योंकि उसके अतिरिक्त कल-पुर्जे देने से संबंधित देशों ने हमें मना कर दिया था। तेजस के साथ ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। इसके कल-पुर्जे हम खुद बना सकते हैं। हालाँकि इसकी लागत काफी ज्यादा रही है और फिर इसे बनने में लगा लंबा वक्त भी इसके खिलाफ जाता है। फिलहाल एक तेजस की कीमत लगभग 200 करोड़ रुपये है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
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