राहुल दुबे/इंदौर। यूं तो शिवराज सरकार भारत की न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा जताते हैं परंतु अकेले इंदौर खंडपीठ में 1100 से ज्यादा अदेश ऐसे हैं जिसका शिवराज सरकार ने पालन नहीं किया। किसी में अवमानना के बाद पालन हुआ तो कई मामले ऐसे हैं जिनमें सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी।
2010 से लेकर 31 मई 2016 तक करीब 1100 से ज्यादा केस सामने आए। इनमें से 50% मामले तो सरकारी कर्मचारियों से ही जुड़े हैं। क्रमोन्नति, पदोन्नति, वेतनमान, विभागीय जांच, ट्रांसफर के मामले प्रमुख हैं। इसके बाद सिविल नेचर व अन्य श्रेणी के प्रकरण आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में हारने के बाद भी अपील
एनवीडीए, लोक निर्माण विभाग, पीएचई में वर्क चार्ज पर काम करने वाले कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों जैसी सुविधा देने के आदेश सुप्रीम कोर्ट दे चुकी है। हाई कोर्ट से हारते-हारते सरकार शीर्ष अदालत तक लड़कर हार चुकी है। इसके बाद भी मध्यप्रदेश सरकार हाई कोर्ट में सुविधाएं नहीं देने के लिए अपील करती है। फिर सुप्रीम कोर्ट तक जाती है। ऐसे उदाहरण होने के बाद भी सरकार का विधि विभाग प्लानिंग नहीं करता है। इंदौर खंडपीठ में सौ से ज्यादा मामले इन विभागों से संबंधित हैं।
विभाग प्रमुखों को जानकारी नहीं
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के मुताबिक विभिन्न विभाग के प्रमुख सचिवों तक हाई कोर्ट के आदेश की जानकारी भी नहीं पहुंचती। यही कारण है कि सरकारी कर्मचारियों से जुड़े मामलों में जब अवमानना दायर होती है तो प्रमुख सचिव या डायरेक्टर को तलब किया जाता है तो कार्रवाई होती है।
छात्रों से जुड़े मामलों में हारने पर भी अपील
10वीं, 12वीं या कॉलेज के छात्रों को ट्रांसफर सर्टिफिकेट, परीक्षा में उत्तरपुस्तिका सही नहीं जांचने पर हर्जाना कार्रवाई करने के आदेश हाई कोर्ट देती है। स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा विभाग की गलती भी हाई कोर्ट में साबित हो चुकी है। कोर्ट आदेश पहली बार में मानने के बजाय जबरन डिविजन बेंच में अपील की जाती है। अंतत: वहां से भी अधिकांश मामलों में हार ही मिलती है।