गुमराह तो वो है जो घरों से निकले ही नहीं.....
आदरणीय भरत पटेल जी, जावेद खान साहब, श्रीमती शिल्पी शिवान जी, श्रीमती सारिका अग्रवाल जी, पंडित मनीष शंकर तिवारी जी, अजीत पाल यादव (दादा) तथा समस्त आजाद अध्यापक संगठन के सदस्यों तथा शेख मोहम्मद हनीफ, भरत भार्गव जी, एच•एन•नरवरिया जी, नरेंद्र त्रिपाठी जी, डी•के •सिगौर एंव समस्त जिलों के अध्यापक संघों के जिलाध्यक्ष एंव मेरे समस्त आम अध्यापक साथियों,
पिछली दस तारीख से संयुक्त मोर्चा का जो कार्यक्रम हो रहा है, उसमें हांलाकि कि निजी स्वाभिमान के चलते मै भी अभी तक नहीं पहुंचा हूँ, परंतु अब मुझे निश्चित तौर पर लग रहा है कि आम अध्यापक के अधिकारो एंव हितों की लड़ाई में सहयोग हेतु भोपाल पहुंचना चाहिए परंतु अकेले मेरे या किसी अकेले संघ के बलबूते सरकार हमारे अधिकारों की मांग मान लेगी ऐसा कतई संभव ही नही है, क्योंकि हम पिछले कई सालों से आंदोलन के दौरान हम इनकी बात मानकर अपने-अपने कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से निभाने मै लग जाते है, परंतु हर बार मध्यप्रदेश शासन एंव उसके नौकरशाहों के द्वारा, हमें बेवकूफ बनाकर एक छोटा सा झुनझुना पकड़ा दिया जाता है और हम अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करने लगते हैं।
अभी संयुक्त मोर्चा द्वारा जो संघर्ष की "लौ" जलाई गई है और वह लोग अभी भी हार मानने को तैयार नही है, हांलाकि पूर्व मै हम हम लोगो के आपस मै बहुत मतभेद रहे है एंव तीखी बहस तक भी बातें पहुंची है, लेकिन मित्रों हमारे अधिकारों एंव हितों के आगे में इन बातों को बिलकुल गौड़ समझता हूँ, इसलिए मै पंडित हिमांशु पांडे आप सभी लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ कि संघर्ष की यह “लौ” धीमी पडे़ या बुझे उसके पहले हम सभी को आम अध्यापक की हैसियत से अपने-अपने मतभेद भुलाकर भोपाल पहुँचकर इस आंदोलन को उसके अंजाम तक पहुंचाना चाहिए।
क्योंकि जब तक “श्रीमान सुधीर रंजन मोहंती जी स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव” है तब हम अध्यापकों के साथ सरकार पूर्ण रूपेण न्याय कर पाएगी मुझे असंभव सा लगता है। उनकी नीतियां हमेशा अध्यापक विरोधी एंव नाजीवादी रही है। आदरणीय साथियों 2013 के धोखे से तो अध्यापक उबर गया था, परंतु अगर इस बार अगर सरकार ने हमारे अधिकारों की अनदेखी की तो मुझे बहुत मुश्किल लगता है अबकी बार आम अध्यापक भविष्य में कभी भी किसी भी आंदोलन के विषय मै सोच सकेगा।
मै पंडित हिमांशु पांडे आप सभी को वचन देता हूँ कि अगर आप सभी मेरे निवेदन को स्वीकार करके एकजुट होकर इस आंदोलन को तेजी प्रदान करते है तो मै अपना आमरण अनशन उसी वक्त खत्म करूँगा जबकि मध्यप्रदेश शासन हमारी मांगों के पक्ष मै आदेश जारी कर देगी, आशा करता हूँ कि पुराने मतभेदों को भुलाकर सिर्फ अध्यापक हित के लिए मेरा निवेदन जरूर स्वीकार करेंगे।
मेरे इस निवेदन का यह मतलब आप सभी यह कतई ना समझे कि मै किसी महत्वाकांक्षा के लिए मै यह सब कर रहा हूँ, मै ना तो किसी संगठन का सदस्य हूँ एंव ना ही किसी संगठन मै किसी भी पद की इच्छा रखता हूँ इसका एकमात्र कारण है कि अब अपने स्वाभिमान का अपमान और आम अध्यापक का शोषण सहनशीलता के बाहर हो चुका है।
रक्ख हौंसला वो मंज़र भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा,
थक कर ना बैठ.... ऐ मंजिल के मुसाफिर, तुझे मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा....
हिमांशु पांडे,दमोह
(आम-अध्यापक)