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संभल लोकसभा में आने वाला बुकनाला गांव, जहां डेढ़ दशक पहले तक हिंदू कुल आबादी में पचास फीसदी थे लेकिन अब तीन हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव में बच्चे-बुजुर्ग सब मिलाकर गिनती के महज 20 हिंदू ही बचे हैं। खास बात यह है कि माननीय मंत्रीजी का गांव में लगातार आना जाना लगा रहता है।
कैराना पर शोर मचाने वाले, बुकनाला पर शायद उतनी हायतौबा न मचाएं लेकिन यदि हालात देखें तो यहां कैराना से ज्यादा गंभीर हालात हैं। बात अगर पलायन की है तो यहां कैराना से ज्यादा हिंदुओं ने पलायन किया है। वजह भी वही अपराध है।
कैराना में तो थम भी गया है, लेकिन बुकनाला में पलायन अब तक जारी है। कभी 1500 से ज्यादा हिंदू थे लेकिन अब गिनती के 20 ही बचे हैं। ये बचे हुए भी कब तक रहेंगे कह नहीं सकते, क्योंकि पलायन का सिलसिला अब तक जारी है।
एक परिवार तो रविवार को ही चूल्हा चक्की समेटकर गांव छोड़ गया। बाकी बचे चार परिवारों के भी उखड़ चुके हैं। ये भी मुमकिन है कि साल के आखिर तक गांव में एक भी हिंदू न बचे।
असमोली लिंक रोड पर सड़क किनारे पड़ने वाला बुकनाला गांव कभी हिंदू बहुल होता था। यह गांव संभल लोकसभा और असमोली विधानसभा क्षेत्र में आता है। 2011 की जनगणना के हिसाब से गांव की आबादी 3084 है, जिसमें महज 20 ही हिंदू हैं। इन्हीं बीस में बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं। जबकि 15 साल पीछे जाकर देखें तो गांव में 1500 से ज्यादा हिंदू थे। लेकिन बदलते माहौल में दोनों वर्गों के बीच दिलों का फासला बढ़ा तो हिंदुओं ने पलायन शुरू कर दिया। पाल बिरादरी के 11 परिवारों ने 15 साल पहले एक साथ गांव छोड़ दिया था।
इसके बाद से हिंदुओं के गांव से पलायन का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब गांव में सिर्फ राजवीर सिंह, प्रताप सिंह, करन सिंह और सोमपाल के परिवार रह गए हैं। गांव के लोगों का कहना है कि कभी इस गांव में ज्यादातर हिंदू ही थे, इक्का दुक्का मुस्लिम परिवार थे। लेकिन जैसे - जैसे मुस्लिमों की आबादी बढ़ी तो हिंदुओं ने खुद ही गांव छोड़ना शुरू कर दिया।