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असल में, नए बीजों को विकसित करना एक खर्चीला काम है। जीएम टेक्नोलॉजी इसलिए भी अधिक महंगी है, क्योंकि वहां लंबे समय तक सुरक्षा मानकों की जांच की जाती है। बेशक सिर्फ लाभ कमाना सार्वजनिक क्षेत्र के बीज-निर्माताओं की मंशा नहीं हो सकती, मगर बीजों की अनवरत आपूर्ति होती रहे, इसके लिए सिर्फ उन्हीं पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता। हमारा अनुभव बताता है कि निजी क्षेत्र ने बीज उत्पादन में बेहतर काम किया है, और आगे भी कर सकता है।
दूसरा सवाल यह है कि क्या यह काम राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति के अनुरूप है? जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि बीजों की ऐसी किस्में विकसित हों, जो तेज गरमी भी सह सकें और कम पानी में बेहतर पैदावार दे सकें। यदि जीएम बीजों को मंजूरी देने की प्रक्रिया सख्त बनाई जाए, तो इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। और एक बार अगर किस्में मंजूर हो गईं, तो फिर यह सुनिश्चित किया जाए कि जिसने प्रौद्योगिकी विकसित की है, उसे मुनासिब रिटर्न मिले। असल में, हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जो नए बीजों के विकास और इनोवेशन को प्रोत्साहित करे। करीब हफ्ते पहले मंत्रिमंडल ने जिस राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंजूर किया है, उसमें इसकी चर्चा है कि इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए क्या जरूरी है? यह नीति ‘आविष्कारों के व्यवसायीकरण’ पर जोर देती है और साथ ही, ऐसे ‘स्थायी कानूनों’ की वकालत करती है, जो यह सुनिश्चित करें कि आविष्कारकों के अधिकारों की पर्याप्त रक्षा की जाएगी।
इससे संबंधित कार्रवाई को अनिवार्य वस्तु अधिनियम के अंतर्गत किया जाना भी समस्याएं खड़ी करता है। बीजों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा पौध किस्में व कृषक अधिकार संरक्षण (पीपीवीएफआर) अधिनियम के तहत होती है। राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति में भी इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम के तहत, अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों से जुड़े प्राधिकरण के यहां ‘जनता की उचित जरूरतों’ के लिए रजिस्टर्ड बीज या किस्मों की अन्य सामग्री संतोषजनक नहीं है, या ‘उचित कीमत पर’ बीज या किस्मों की अन्य सामग्री मौजूद नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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