आपके मुकुट में इनका भी योगदान है, शिवराज जी !

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। संघ के सामाजिक समरसता अभियान की कई शाखाओं में श्रम परिहार बैठक तक आयोजित नहीं हुई कि मध्यप्रदेश में “माई का लाल” उछल गया। सरकारी दफ्तरों में एक साथ काम करते आ रहे लोगों के बीच एक अदृश्य लकीर खिंच गई और नरसिंहपुर के गाँव कपूरी से दलितों के पलायन की खबरें आने लगी। ऐसा क्यों हुआ प्रदेश के उच्च न्यायलय के निर्णय पर एक टिप्पणी हुई “ कोई माई का लाल पदोन्नति वापिस नहीं ले सकता।” यह उद्घोष कितना सार्थक, समयोचित और सामाजिक है, अपने आप में एक प्रश्न चिन्ह है। नतीजतन दोनों और से आन्दोलन शुरू हो गये और कल तक गलबहियां डाले, साथ-साथ चाय पीते लोग अलग अलग गोलों में गोलबन्द हो रहे हैं।

मध्यप्रदेश में यह पहली बार नहीं हो रहा है। ऐसा एक बार पहले भी हुआ है। तब एक सोशल इंजीनियर ने खम ठोंक कर था, “मुझे उनके वोटो की जरूरत नहीं”। ऐसे वाक्य समाज में गैर बराबरी को कम नहीं करते, अपितु बढ़ाते हैं और बढ़ते-बढ़ते इसकी शक्ल इतनी खराब हो जाती है कि पहले आपसी रिश्ते दरकते हैं और समाज में एक ऐसा वातावरण बनने लगता है। जो गैर बराबरी के प्रयासों को बराबर कर डालता है।

ऐसी टिप्पणीयों से ताली तो बटोरी जा सकती है पर वो ताल बिगड़ जाती है, जो समाज के विकास के लिए बज रही होती है। चुनाव के दौरान तुष्टिकरण के लिए यह सब कितने सालों से हो रहा है, अभी जाति, कभी धर्म और अब कर्म को केंद्र बनाकर विकास की बमुश्किल पटरी पर आई गाडी को उतारने की कोशिश के अलावा इसे कोई और नाम नहीं दिया जा सकता है। भोपाल अकार्ड और सोशल इंजीनियरिंग के जुमलों के विरोध में बने ताज को तो ही आज, शिवराज पहने बैठे हैं।

दोष सत्ता के मद का है। जो कभी किसी के विरुद्ध तो कभी किसी के विरुद्ध निकल कर अपने को सबसे समझदार साबित करने लगता है। न्यायलय में चल रहे मुकदमो और निर्णयों की अपील के बावजूद जल्दबाजी में की गई टिप्पणी हमेशा घातक सिद्ध हुई हैं। 15 साल पहले का इतिहास है। समाज ने जो मुकुट सौंपा है, उसमें कम और ज्यादा दोनों तरह की कलगी लगी है, इन्हें नोचने पर मुकुट गंजा और बदरंग हो जाता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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