भोपाल। प्रदेश सरकार के अधीन सभी विश्वविद्यालय अब लोकायुक्त जांच के दायरे में आएंगे। इसके लिए सरकार विधानसभा के मानसून सत्र में लोकायुक्त-उप लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन विधेयक लाएगी। इसके अलावा सत्र में आधा दर्जन विधेयक और लाने की तैयारी है।
इसमें पंचायत एवं नगरीय निकाय अधिनियम में संशोधन भी है। इस संशोधन के लागू होने पर ऐसा कोई भी व्यक्ति पंचायत या निकाय का चुनाव नहीं लड़ सकेगा, जिसके घर पर शौचालय नहीं होगा। ऑनलाइन खरीद-फरोख्त को भी टैक्स के दायरे में लाने की तैयारी है।
18 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र में सरकार आधा दर्जन से ज्यादा संशोधन विधेयक लाने की तैयारी में है। इसमें लंबित चल रहे लोकायुक्त के अधिकार बढ़ाने का संशोधन विधेयक भी है। अभी प्रदेश के सात सरकारी विश्वविद्यालय लोकायुक्त की जांच के दायरे में हैं, जबकि पिछले कुछ सालों में नए विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई है। इन सभी को जांच के दायरे में लाने लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने सरकार को दो-तीन साल पहले प्रस्ताव दिया था, लेकिन तब से ये लंबित है।
सामान्य प्रशासन विभाग ने पिछले दिनों वरिष्ठ सचिव समिति की बैठक में संशोधन का प्रस्ताव रखा था, जिसे सहमति दी गई। हालांकि, इसमें एनजीओ और विधायकों को जांच के दायरे में लाने के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि प्रस्ताव को कैबिनेट में रखा जाएगा। इसकी मंजूरी के बाद विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा।
निकाय चुनाव में शौचालय को अनिवार्य शर्त बनाने की सीएम की घोषणा को लेकर पंचायत विभाग ने प्रस्ताव विधि विभाग को भेज दिया है। बताया जा रहा है कि पंचायतों (जिला से लेकर ग्राम पंचायत तक) के साथ नगरीय निकायों में भी इस प्रावधान को अनिवार्य किया जाएगा। इसी तरह ऑनलाइन शॉपिंग (स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसे प्लेटफार्म) पर छह प्रतिशत की दर से टैक्स लिया जाएगा।
इसके लिए वाणिज्यिक कर विभाग वैट अधिनियम में संशोधन विधेयक लाएगा। सरकार ने बजट में ऑनलाइन शॉपिंग को कर के दायरे में लाने की घोषणा की थी। विभाग ने उत्तराखंड सहित कई राज्यों के मॉडल का अध्ययन करने के बाद कर लगाने का मॉडल तैयार किया है। इसमें टैक्स कोरियर कंपनी से लिया जा सकता है। सरकार को उम्मीद है कि इससे साल में 200 करोड़ रुपए की आय होगी।
इसके अलावा शराब पर सेस लगाने की भी तैयारी है। इसके माध्यम से होने वाली आय से जिलों में नशामुक्ति के कामों को अंजाम दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने बजट में इस कर को लगाने का प्रस्ताव तैयार किया था लेकिन ऐनवक्त पर कदम वापस खींच लिए थे। कैबिनेट में सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव ने इस कर की सिफारिश की थी।
सरकार मानसून सत्र में निजी विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक भी लाएगी। इसके माध्यम से ऐसी शिक्षण संस्थाओं को प्रदेश में विश्वविद्यालय खोलने की अनुमति देने पर रोक लगेगी, जिनके पास प्रदेश में कम से कम पांच साल शिक्षण संस्थान के संचालन का अनुभव नहीं है। हालांकि, सरकार विशेष छूट का पावर अपने हाथ में रखेगी, ताकि सिम्बॉयसिस जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान कठोर शर्तों के चलते यहां से चले न जाएं या फिर आएं ही न।