एमएम चन्द्रा। योग का अर्थशास्त्र समझने वालो की इस दुनिया में बहुत कमी है। इसलिए हम आपको दूसरी बार योग दिवस कुछ महत्त्वपूर्ण ज्ञान दे रहे है कि दुनिया में शून्य बजट में कोई भी स्वास्थ्य बीमा नहीं मिलता है, लेकिन योग शून्य बजट में स्वास्थ्य आश्वासन देता है। भारत जैसे विकसित देश के लिए बहुत उपयोगी है। अगर इस निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान दें, तो हम बहुत बचत कर सकते हैं। सब तरीकों में योग सबसे किफ़ायती एवं सुगम है। इसलिए योग को हमारी जिंदगी का हिस्सा बनाना जरूरी है। योग बाबा की सभी जड़ी बूटियां और प्रॉडक्ट तो बस सूंघने के लिए बने है। बाजार का इससे कोई लेना देना नहीं है।
इस समय देश के हर कोने में योग के कार्यक्रम से लोग जुड़े हुए हैं। जिसके बहुत से फायदे हैं। सुबह सुबह योग करो और गुरुओं के प्रॉडक्ट या किसी कम्पनी का प्रॉडक्ट भी बेचो। यानि सब अपने-अपने समय की सुविधा के हिसाब से इस योग कार्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं। सरकारी बीमा भी 1 रु का है लेकिन योग तो फ़्री है। व्यापार से इसका कोई लेना देना नहीं, यह तो केवल समाज सेवा है।
UN द्वारा पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को भारत की उन आबादी के अनुरोध पर गत वर्ष जबरदस्ती लागू करवाया गया है जो 20 रुपये रोज पर गुजरा कर रहे है, जो 45 प्रतिशत आबादी आधे पेट भोजन करती है, जो सर्दी गर्मी से हर साल हजारों कि तादाद में मर जाती है, उन महिलाओं के कारण जो 80 प्रतिशत एनीमिया से पीड़ित है, उन किसानों के आग्रह पर जो सिर्फ छोटी सी पानी की समस्या के कारण आत्महत्या कर रहे, उत्पादन महंगा होने और सस्ता बिकने के खुशी खासी मर रहे है।
सबसे बड़ी बात है कि योग को कुछ भी देना नहीं पड़ता यह देता ही देता है, वो भी सब कुछ फ़्री में, अब योग ही सबका कल्याण कर सकता है भुखमरी से, गरीबी से, मंहगाई से भी, और बेरोजगारी से भी। देखा नहीं! योग बाबा ने गली गली स्वरोजगार के तहत सबको रोजगार दे दिया है। अब यही एक मुक्ति का मार्ग बचा है जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार बार अमेरिका जाकर ओबामा जी से मुहर लगवा दी है।
योग ही एक ऐसा आन्दोलन है जो सभी संप्रदाय को परलोक में तो नहीं इस इहलोक के लिए स्पेशल रूप से बनवाया गया है। तभी तो परलोक का पूरी तरह फायदा उठा पाएंगे वरना अस्वस्थ परलोक जाओगे तो क्या घंटा मजा लोगे।
योग आस्तिक और नास्तिक के लिए जीरो बजट वाला हेल्थ इंश्योरेंस है। यह सरकार की गारंटी वाली योजना है। जैसे कि कला धन ,बैंकों में 15 लाख और अच्छे दिन लाये गये है। यह भी कोई चुनावी जुमला नहीं एक हकीकत है। यह सिर्फ गरीब लोगों के लिए फायदे मंद है। अमीर लोग तो बस योग सिखाने में सबकी मदद करेंगे। उसके बदले में चाहे जल, जंगल और जमीन ही क्यों न उन्हें मुफ्त देनी पड़े।