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इस प्रवेश परीक्षा के लिए जिला मुख्यालय में एक परीक्षा केंद्र बनाया गया था। जिसमें लगभग 1000 परीक्षार्थियों ने इसमें भाग लिया। किंतु यह प्रवेश प्रक्रिया उन छात्रों के लिए दुख का कारण बनी, जहां सिर्फ विदेशी भाषा (अंग्रेजी) को अपना कर विश्वविद्यालय ने उन छात्रों के साथ भद्दा मजाक किया जिनसे यह भाषा नहीं आती है। जबकि विश्वविद्यालय ने अपनी विज्ञप्ति में यह साफ लिखा था कि इस प्रवेश परीक्षा में 80 प्रतिशत आवेदन मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों सो आये थे। इनमें सर्वाधिक हिन्दी भाषी परीक्षार्थी शामिल थे किंतु विश्वविद्यालय ने इन छात्रों का दर्द नहीं समझा और अंग्रेजी भाषा में परीक्षा संचालित करवाई।
मजे की बात तो यह है कि इस पूरे परीक्षा का संचालन विश्वविद्यालय के लोगों द्वारा किया गया। परीक्षा में जो परीक्षार्थियों को पर्चे दिए गए थे वह भी उनसे ले लिये गये। परीक्षा हाल से निकल छात्रों ने अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह कैसी परीक्षा जिस भाषा की हमें जानकारी नहीं है उस भाषा में हमे मजबूरन परीक्षा देनी पडी। इससे ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय हमे इस परीक्षा में सिर्फ औपचारिक रूप से शामिल कर अपनी खानापूर्ति किया है।
देश के प्रधानमंत्री ने अपने पहले ही उद्बोधन में साफ किया था कि देश में अब हिन्दी का मान रखा जायेगा। सरकारी काम-काज हिन्दी में होंगे इसके लिए वह प्रयासरत है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी अब धीरे-धीरे इस प्रक्रिया को अपना रहा है किंतु विश्वविद्यालय इस बात से अनभिज्ञ है कि प्रधानमंत्री क्या चाहते हैं। हिन्दी भाषी छात्रो से विश्वविद्यालय ने अंग्रेजी भाषा में परीक्षा लेकर उनकी प्रवेश में रोक लगाने का काम किया है। इस संबंध में विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी नागेंद्र सिंह से जानकारी चाही तो उन्होंने दिल्ली में स्थित मानव संसाधन मंत्रालय की बात कहकर पल्ला झाड लिया कि हमें ऐसा आदेश वहीं से प्राप्त है। हम कुछ नहीं कर सकते जबकि यह गलत है। मानव संसाधन मंत्रालय ने साफ कहा है कि जिस प्रदेश में सर्वाधिक बोली जानी वाली भाषा होगी उन क्षेत्रों के परीक्षार्थियों से उसी भाषा में परीक्षा व अन्य कार्य किये जायें।
प्रवेश परीक्षा के लिए जब इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति से जानना चाहा तो उन्होंने इसे अपनी गलती मानते हुए स्वीकार किया कि यह गलती हो गई है अगली बार से हम अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा में भी पर्चे छपवाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हमे देश भर के 20 परीक्षा केंद्रों में यह प्रवेश परीक्षा संचालित करनी थी जहां कई जगह हिन्दी नहीं जानते किंतु जल्दी-जल्दी में हम उन भाषा को शामिल नहीं कर पाये जो वहां के स्थानीय भाषा थी इस वजह से हमे सिर्फ अंग्रेजी विषय मे प्रवेश परीक्षा के लिए पर्चे छपवाने पडे।