
मुख्यमंत्री और उनकी मंडली की सरकार के खर्च पर हो रहीं ऐसी विदेश यात्राऐं मात्र आरामफरोशी और भ्रष्टाचार से कमाई गई अकूत दौलत को विदेशों में संरक्षित करने के लिए ही हुई हैं, अन्यथा सरकार यह स्पष्ट तौर पर बताये कि प्रदेश में कितने विदेशी निवेशक यहां अपना उद्योग स्थापित कर चुके हैं और इन उद्योगों से प्रदेश के कितने नौजवानों के लिए रोजगारों का सृजन हुआ है।
इन्वेस्टर्स समिट में उद्योगपतियों और प्रदेश की जनता को झूठ परोसा जा रहा है। वर्ष 2014 में इंदौर में संपन्न समिट के दौरान सरकार ने 26,700 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराने की बात कही थी, किंतु अभी तक सिर्फ 10 हजार हेक्टेयर भूमि सरकार को उपलब्ध हो पायी है और इसमें भी कड़वा सत्य यह है कि एक इंच भूमि भी विकसित नहीं है।
बीते वर्ष मुख्यमंत्री ने बड़े-बड़े विज्ञापनों में यह प्रचार किया था, कि प्रदेश की ग्रोथ रेट 10.02 प्रतिशत है, जो देश में सर्वाधिक है। हकीकत यह थी कि यह ग्रोथ रेट 9.89 प्रतिशत थी, जो बिहार और पांडिचेरी राज्यों से भी पीछे थी। प्रदेश में औद्योगिक विकास बेहद संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा है। माईनिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 2.19 प्रतिशत है। मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर की स्थितियां भी बेहद बदतर हैं, इसकी भी विकास दर 0.13 प्रतिशत है। टाटा स्ट्रेेटटिजक मेनेजमेंट द्वारा जारी वेलबिंग इंडेक्स के अनुसार कामकाजी महिलाओं के लिए मप्र सर्वाधिक असुरक्षित है।
उक्त परिस्थितियों के साथ ही प्रदेश में अधोसंरचना की स्थिति भी चिंताजनक है। बिजली, पानी, सड़क, रेल और हवाई यात्राओं के परिवहन की स्थिति भी उद्योगों के लिए अनुकूल नहीं है। प्रदेश में निरंतर ध्वस्त हो रही कानून-व्यवस्था, बैंक डकैती, उद्योगपतियों के अपहरण और उनकी हत्याओं की घटनाओं के चलते भी प्रदेश में विदेश तो क्या देश का भी उद्योगपति अपने निवेशों के प्रति तत्पर नहीं है। इन स्थितियों के जिम्मेदार भी कौन हैं, चीन जा रहे मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए।
लेखक मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता हैं।