राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक निजी आर्थिक शोध संस्थान की हाल में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में काला धन सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20 प्रतिशत होने का अनुमान है। इसका मतलब है कि भारत में लगभग 30 लाख करोड़ रुपये का काला धन है। यह आंकड़ा बहुत बड़ा है, लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था में काले धन का प्रतिशत लगातार घट रहा है। 1970 और 1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में काले धन का प्रतिशत सबसे ज्यादा था, जो उसके बाद घटना शुरू हो गया। यह स्वाभाविक भी है कि भारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था में काला धन ज्यादा हो। उदारीकरण के बाद की नई अर्थव्यवस्था में सफेद धन का अनुपात बढ़ा और काले धन की भूमिका लगातार कम होती गई, हालांकि अब भी यह रफ्तार उतनी तेज नहीं है, जितनी होनी चाहिए।
पिछले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने काले धन पर नियंत्रण और विदेश से काला धन वापस लाने को बड़ा मुद्दा बनाया था, हालांकि मोदी सरकार की इस बात के लिए आलोचना होती है कि चुनाव जीतने के बाद इस मसले पर उसने ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई। चुनावों के दौरान कही गई कुछ बातें तो अतिरंजित और असंभव थीं, फिर सरकार की कुछ व्यावहारिक मजबूरियां भी थीं। इसके बावजूद इस सरकार ने काले धन पर नियंत्रण के लिए कुछ कोशिशें की हैं, और उनके नतीजे भी देखने में आ रहे हैं। इस नई रिपोर्ट के मुताबिक, एक नतीजा तो यह है कि काले धन के लेन-देन के लिए बैंकिंग या अन्य औपचारिक वित्तीय तरीकों का इस्तेमाल करने से लोग बचने लगे, क्योंकि ऐसे में सरकार की नजर से बचना मुश्किल होता जा रहा है।
काला पैसा अब नकदी के रूप में ज्यादा है। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि बैंकों में पैसा जमा करने की दर घटी है और डेबिट कार्ड की संख्या बढ़ी है, लेकिन उनसे लेन-देन घटा है। काले धन पर शिकंजा कसने से काले धन के बाजार में ब्याज दर पिछले एक साल में 24 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई है। ये सारी बातें यही दर्शाती हैं कि काले धन के अर्थशास्त्र पर नियंत्रण हो रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार और तेज होनी चाहिए। सरकारी कामकाज में सरल नियम और पारदर्शिता, चुनाव सुधार और रियल इस्टेट क्षेत्र के सुधार इस रफ्तार को तेज करने में उपयोगी हो सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए