
अध्यापकों के दर्जनभर से ज्यादा संग़ठन हैं किन्तु धिक्कार है इतने संगठनों और नेताओं के जिनके बड़े बड़े दावे करने के बाद भी सरकार ने वही किया जो उसे करना था। कल तक अध्यापकों के जो नेता अपने दम पर मुख्यमंत्री व् सरकार को झुकाने के बड़े बड़े दावे कर दहाड़ रहे थे उनकी खोखले आदेश जारी होते ही आवाज़ गुम हो गई है। कल तक जो खुद के बूते अध्यापकों को छटे वेतनमान दिलाने का बड़ा ढिंढोरा पिट रहे थे वह खुद गणना पत्रक की विसंगति देख छाती पिट रहे हैं।
अब सरकार को कोसने से होता क्या है। सरकार तो चाहती ही है कि अध्यापकों के हर महीने नए संघ बनते रहे और अध्यापक अलग अलग धड़ो में बंटते रहें। अभी दो डेढ़ दर्जन अध्यापकों के संघ बने हैं। उम्मीद है इस विसंगति के बाद दो चार और नए संघ बन जायेगे। जब तक मध्यप्रदेश का अध्यापक एक जुट नही होगा। कोई भी संघ अध्यापकों की लड़ाई सरकार से नही लड़ सकता है। आज अध्यापकों के नेता अध्यापक हित में सरकार से लड़ने की बजाय अपने ही लोगों को बांट कर नीचा दिखाकर खुद को स्वयंभू साबित करने पर तुले हुए हैं। आज प्रदेश के अध्यापकों को सशक्त और ईमानदार नेतृत्त्व की आवश्यकता है।
प्रदेश के अध्यापकों की बाजुओ में आज भी इतना दम है कि वह वह अपनी एक हुंकार से सरकार को सकते में डाल सकता है। प्रदेश का अध्यापक जिस दिन अपने हक को पाने के लिए एक नेतृत्त्व एक झंडे तले एकजुट हो जायेगे स्वतः ही अध्यापकों की समस्या खत्म हो जायेगी। अतः में एक बार सभी साथियो से अध्यापक हित में एक ही निवेदन करूँगा कि अध्यापक हित में निस्वार्थ भाव से एकजुट हो जाये।