भोपाल। कैंसर पीड़ित एक कर्मचारी को अपनी बीमारी का सबूत देने के लिए शिवपुरी से भोपाल 300 किलोमीटर का सफर एंबुलेंस से तय कर आना पड़ा। उसके अधिकारियों ने उसका तबादला कर दिया था। जब उसने अपनी बीमारी का हवाला देते हुए मानवाधिकार आयोग में अपील की तो अधिकारियों ने उसे वायरल फीवर का मरीज बता दिया। आयोग ने भी अधिकारियों की बात मानकर केस बंद कर दिया। अंतत: न्याय मांगने के लिए खुद कैंसर पीड़ित कर्मचारी को एंबुलेंस से आयोग के सामने उपस्थित होना पड़ा।
शिवपुरी के मिश्रीलाल जाटव मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत कंपनी में लाइनमैन के पद पर हैं। बेटे बहादुर सिंह जाटव ने आयोग में शिकायत की थी कि कैंसर पीड़ित पिता का ग्वालियर में इलाज चल रहा है। बीमारी संबंधी सभी दस्तावेज असिस्टेंट इंजीनियर संदीप पांडे और उप महाप्रबंधक चंद्र कुमार को दिए। अधिकारियों ने उनका ट्रांसफर कर दिया और वेतन रोक दिया।
अफसरों ने किया गुमराह
जाटव की शिकायत पर आयोग द्वारा कंपनी से मांगी गई रिपोर्ट में उप महाप्रबंधक चंद्र कुमार ने आयोग को बताया कि लाइन मेन मिश्रीलाल ने कैंसर जैसी बीमारी के दस्तावेज नहीं दिए। केवल यह बताया कि उन्हें वायरल फीवर है। 90 दिन अनुपस्थित रहे। इसलिए वेतन रोक दिया गया।
पहले हो गया था केस बंद
आयोग ने कंपनी द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर प्रकरण को नस्तीबद्ध कर दिया था। पीड़ित की हालत देखने के बाद फिर से ओपन किया गया है। उप महाप्रबंधक चंद्र कुमार के खिलाफ कार्रवाई करने व असिस्टेंट इंजीनियर संदीप पांडेय की जिद की वजह से बिल स्वीकृत न करने के मामले में सख्त विभागीय कार्रवाई करने की सिफारिश की है। मामले की सुनवाई 11 जुलाई को रखी है।
बिगड़ गई तबियत, अफसरों ने वहीं लिखी रिपोर्ट
पत्नी और बेटे-बेटी के साथ तीन सौ किमी की यात्रा करके भोपाल पहुंचे मिश्रीलाल जाटव की हालत गंभीर हो गई। उन्हें किसी तरह विजिटर रूम में पहुंचाया। कुछ संभलने के बाद उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष वीके कंवर के कमरे में ले जाया गया। कंवर ने ऊर्जा विभाग के पीएस आईसीपी केसरी को फोन लगाकर तुरंत उपस्थित होने को कहा। जवाब मिला कि वे भोपाल से बाहर हैं, प्रतिनिधि भेज रहे हैं। इसके बाद ऊर्जा विभाग के एसीएस अग्रवाल और संजय निहलानी पहुंचे। कंवर ने उन्हें फटकार लगाई और पीड़ित की वास्तविक जानकारी लिखकर देने कहा। उन्होंने जानकारी लिखित में दी और रुका हुआ पेमेंट व अन्य आर्थिक सहायता करने आश्वासन दिया।