Gwalior लोकायुक्त जांच घोटाला: हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

ग्वालियर। यहां हुए जांच घोटाले में हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर लोकायुक्त से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने आदेश दिए है कि चार सप्ताह में बताएं कि जांच में एक रूपता क्यों नहीं है। याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक आराधे व न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने की।

याचिकाकर्ता आरके शुक्ला के अधिवक्ता अनिल मिश्रा ने बताया कि विशेष स्थापना पुलिस पहले किसी लोक सेवक पर आय से अधिक संपत्ति बताती है, फिर छापा मारती है, लेकिन जांच के बाद खात्मा रिपोर्ट लगा दी जाती है। जिस अधिकारी को उन्हें बचाना होता है उसके मामले में जांच के तरीके बदल जाते हैं। आय-व्यय की गणना में गड़बड़ियां की जाती हैं। वहीं, जिसे फंसाना होता है, उसके लिए जांच अधिकारी अलग पैमाना अपनाते हैं।

लोकायुक्त की जांच में एकरूपता नहीं है। न कोई मापदंड बनाया है। जांच अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। लोकायुक्त की गड़बड़ियों को रोकने के लिए नियम बनाए जाएं। कोर्ट ने विशेष स्थापना पुलिस के डीजी, पुलिस अधीक्षक ग्वालियर, सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

हाईकोर्ट का इन बिंदुओं पर कराया ध्यान आकर्षित
आबकारी विभाग के डिप्टी कमिश्नर डीआर जौहरी के खिलाफ 14 अप्रैल 2010 को एफआईआर नंबर 7/10 रजिस्टर्ड की थी। इसमें चैक पीरिएड 1980 से 2006 निर्धारित किया गया था, लेकिन खात्मे के वक्त चैक पीरिएड से 2 साल कम कर दिए। 2004 तक ही आय व्यय की गणना की गई। 2004 से 2006 के बीच सबसे अधिक व्यय किया था।

वैसे लोकायुक्त मकान के वैलुवेशन की गणना पीडब्ल्यूडी व हाउसिंग बोर्ड से कराती है, लेकिन बिजली कंपनी के कार्यपालन यंत्री अरुण शर्मा को बचाने के लिए उनके मकान की गणना चार्टर एवं रजिस्टर्ड वेलुअर का वैलुवेशन स्वीकार किया है। यह वैलुवेशन अरुण शर्मा ने ही करा कर दिया था। अकाउंटेंट ने तीन मंजिला मकान के निर्माण पर 19 लाख 6000 हजार रुपए बताया है।

बचाने के यह अपनाए हैं तरीके
जिस अधिकारी को बचाना होता है उसकी ग्रोस सेलरी जोड़ी जाती है। जिसे फंसाना होता है उसकी नेट सेलरी लगाई जाती है।

जिन अधिकारियों की खात्मा रिपोर्ट लगाई है, उन्हें खेती से 100 प्रतिशत आय दी है, जबकि जिन्हें फंसाना होता है, उन्हें खेती से 50 फीसदी आय दी जाती है।

परिवहन विभाग के प्रधान आरक्षक रवीन्द्र कुमार जैन की आय से 200 गुना संपत्ति बताकर पहले चालान प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी, लेकिन उसे बचाने के लिए दो बार पूरक जांच कराई गई। उनके व्यय को 3.08 पर ला दिया। लोकायुक्त ने खात्मा पेश कर दी। जबकि सीआरपीसी में पूरक जांच का प्रावधान नहीं है।

आय से अधिक संपत्ति के मामले में आय व व्यय की गणना करते वक्त बिजली के बिल, बच्चों की पढ़ाई की भी गणना की जाती है, लेकिन जो खात्मा रिपोर्ट लगाई हैं, उनमें बिजली पर खर्च व बच्चों की पढ़ाई के खर्च को नहीं जोड़ा है।

छापा मारते वक्त घर के सामान की सबसे अधिक रेट लगाई जाती है, लेकिन जांच के बाद आधी से कम रह जाती है।

जलकर की राशि व्यय में जोड़ी जाती है, लेकिन परिवहन विभाग के प्रधान आरक्षक की जल कर की राशि व्यय में नहीं जोड़ी।

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