अक्षय बाजपेयी/इंदौर। शिक्षा के सिस्टम को पारदर्शी और गुणवत्तापूर्ण बनाने के सरकार लाख दावे करे लेकिन सरकारी सिस्टम ही योजनाओं पर पानी फेर देता है। कॉलेजों के लिए जैसे ही ऑनलाइन प्रवेश का नियम लागू हुआ, कॉलेजों में अल्पसंख्यक दर्जा हासिल करने की होड़ लग गई। चार साल पहले शहर में जहां पांच कॉलेज अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त थे वहीं अब इनकी संख्या 34 हो चुकी है। इसके कारण अल्पसंख्यक दर्जा मिलते ही कॉलेज को ऑन लाइन प्रवेश से छूट मिल जाती है।
चार साल में छह गुना से ज्यादा हो गई कॉलेजों की संख्या
प्रदेशमें ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया सन् 2012 से शुरू हुई। इसके बाद से ही कॉलेजों ने अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त करने के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दी। प्रदेश सरकार 2007 के मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दे रही है। दर्जा लेने के बाद कॉलेजों को अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को एडमिशन में प्राथमिकता देना होती है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इन कॉलेजों में ज्यादा संख्या बहुसंख्यक समाज के विर्द्याथियों की ही है। अल्पसंख्यक दर्जा लेने वाले प्रदेश में सबसे ज्यादा कॉलेज इंदौर में है।
अल्पसंख्यक दर्जा मिलते ही ये होते हैं लाभ
कॉलेज विद्यार्थियों को अपने स्तर पर प्रवेश दे सकते हैं।
पूरी प्रक्रिया ऑफलाइन होती है।
सत्यापन के लिए सरकारी कॉलेजों में विद्यार्थियों को नहीं भेजना पड़ता।
विलंब शुल्क नहीं लगता।
सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है।
ऑन लाइन में ये होती है प्रक्रिया
प्रवेश के लिए रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करवाना पड़ता है।
सत्यापन सरकारी कॉलेजों में होता है।
विद्यार्थियों से विलंब शुल्क ले सकते हैं।
कॉलेजों को फीस सहित सारी जानकारी सरकार को देना होती है।
धांधली हो रही है
कॉलेजों-स्कूलों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने में धांधली हो रही है। इस बारे में विभाग को पत्र लिख चुका हूं। आयोग को धांधली की शिकायतें मिली हैं।
निसार अहमद, सचिव मप्र राज्य पिछड़ा आयोग
अधिकारियों से बुलवाई है जानकारी
अल्पसंख्यक दर्जा देने में गड़बड़ी हो रही है तो यह गलत है। अधिकारियों से पूरी जानकारी बुलवाई है।
दीपक जोशी, राज्यमंत्री शिक्षा