राकेश दुबे@प्रतिदिन। अमेरिका के प्लोरिडा प्रांत में हुए जनसंहार की घटना को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे सभी अमेरिकियों पर हमला करार देते हुए एक आतंकवादी घटना बताया है। अगर आतंकवाद के दृष्टिकोण से देखें तो 9/11 के बाद यह अमेरिका में सबसे बड़ा आतंकी हमला है। अगर गोलीबारी के लिहाज से देखें तो भी अमेरिकी इतिहास में इस तरह की यह अब तक की सबसे बड़ी घटना है। इससे पहले, 2007 में वर्जीनिया टेक विश्वविद्यालय में गोलीबारी की ऐसी बड़ी घटना हुई थी जिसमें बत्तीस लोग मारे गए थे।
पल्स नाइट क्लब में हमला करने वाले व्यक्ति के आइएस का समर्थक होने के संकेत मिले हैं। यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी उस पर काफी समय से नजर रखे हुए थी। फिर, इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम देने के उसके इरादे की भनन क्यों नहीं लग पाई? जिस तरह आइएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है उसे देखते हुए बहुत-से लोग इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का वाकया मानते हैं। हकीकत यह है इस जनसंहार का अमेरिका की आप्रवासन नीति, हथियार लाइसेंस नीति से लेकर आंतरिक सुरक्षा नीति तक, ढेर चीजों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इस घटना का असर राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ सकता है यह माना जाता रहा है कि आतंकवादी संगठनों के हाथ-पैर साबित होने वाले लडाके वंचित तबके के अल्पशिक्षित युवा होते हैं।
आइएस से प्रभावित होने वाले युवाओं की पृष्ठभूमि इस पुरानी धारणा को गलत ठहराती है। भारत में पिछले दो साल में आइएस से संभावित संबंध के शक में जिन युवाओं से पूछताछ की गई उनमें से सत्तर फीसद उच्चशिक्षित और मध्यवर्गीय या उच्च मध्यवर्गीय परिवारों से थे। इसके विपरीत, वर्ष 2000 से 2014 के बीच, यानी आइएस के उभार से पहले, आतंकवाद के मामलों में जिन संदिग्धों से पूछताछ की गई वे गरीब तबके के थे; उनमें से नब्बे फीसद ने स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं की थी। आतंकवादी संगठन इस तरह की वंचना के अहसास को एक खतरनाक मोड़ देकर उसका इस्तेमाल अपने लिए ‘कार्यकर्ता’ तैयार करने में करते आए हैं। लेकिन आइएस ने तो सिर्फ अपने एजेंडे के आॅनलाइन प्रचार के जरिए अपने समर्थक और ‘जिहादी’ पैदा किए हैं। अमेरिका को दहला देने वाली यह घटना दुनिया के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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