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श्री मिश्रा ने कहा कि राज्य शिक्षा केंद्र को प्रतिवर्ष स्कूली बच्चों के लिए पुस्तकें प्रकाशित करवाकर उन्हें सस्ती दरों पर विद्यार्थियों को विक्रय किये जाने हेतु केंद्र सरकार एक बड़ी धनराशि आवंटित करती है। राज्य शिक्षा केंद्र उसे पाठ्य पुस्तक निगम को हस्तांतरित करता है, जिसमें निगम को अपना प्रशासनिक व्यय निकालने की छूट प्रदान है। निगम के पास आय के कोई अतिरिक्त साधन उपलब्ध नहीं हैं, उसके बावजूद भी आज उसके पास लगभग 100 करोड़ रूपयों से अधिक की एफडी जमा है और वह आधिकारिक तौर पर 4 करोड़ रूपयों से अधिक का आयकर दाता भी है। यह बात समझ से परे है कि निगम के पास इतनी बड़ी धन राशि कहां से और किस मद से हासिल हुई है?
श्री मिश्रा ने कहा कि इससे यही प्रतीत होता है कि निगम विद्यार्थियों को अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकें लागत से ज्यादा मूल्य पर बेचकर बड़ी मात्रा में मुनाफाखोरी कर रहा है और इस मुनाफाखोरी में समूची मूल्य निर्धारण समिति, जिसके अधिकांश सदस्य सचिव स्तर के अधिकारी हैं, भी शामिल हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया है कि वे अपनी व्यक्तिगत रूचि से इस विषय जांच करायें और विद्यार्थियों के व्यापक हितों में फैसला लें, ताकि जिन पवित्र उद्देश्यों को लेकर केंद्र सरकार विद्यार्थियों के हित में एक बड़ी धनराशि आवंटित कर रही है, पात्र विद्यार्थी उससे लाभान्वित हो सकें।