झारखंड। राजधानी रांची से करीब 230 किलोमीटर की दूरी पर नगर उंटारी प्रखंड का वंशीधर मंदिर देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। नगर उंटारी गढ़ के मुख्य द्वार के पास स्थित मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की चार फीट ऊंची और 32 मन वजनी (1280 किलो) प्रतिमा भक्तों का मन मोह लेती है। सोने की छतरी के नीचे वंशीधर राधारानी के साथ बांसुरी बजाते हुए विराजमान हैं। वैसे तो इस प्रतिमा की कीमत नहीं आंकी जा सकती है लेकिन आज के सोने के भाव से तुलना करें तो इसकी कीमत करीब 400 करोड़ रुपए है।
बिना किसी पॉलिश या रसायन के प्रयोग के बावजूद इस प्रतिमा की चमक अद्वितीय है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार की सीमा के काफी करीब होने के कारण नगर उंटारी के वंशीधर मंदिर में फागुन माह में हर वर्ष लगने वाले मेले में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है।
महारानी को आया था सपना
मंदिर के पुजारी रहे स्व. सिद्देश्वर तिवारी के लिखित इतिहास के अनुसार 1884 में नगर उंटारी के महाराज भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमानी कुंवर ने शिवपहरी पहाड़ी में दबी इस प्रतिमा के बारे में स्वप्न देखा था। अगले दिन रानी अपनी सेना के साथ स्वप्न वाले स्थल पर पहुंचीं। वहां खुदाई करने पर श्रीकृष्ण की प्रतिमा मिली।
प्रतिमा को हाथी पर बैठाकर नगर गढ़ लाया जा रहा था लेकिन हाथी मुख्य द्वार से पहले ही बैठ गया और कई प्रयत्नों के बाद भी नहीं उठा। बाद में रानी ने उसी स्थल पर मंदिर का निर्माण करवाया। प्रतिमा केवल श्रीकृष्ण की ही थी इसलिए वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा बनवाकर मंदिर में एक साथ स्थापित कराई गई।
चोरी करने वाले अंधे हो गए
बुजुर्गों के अनुसार 1930 के आस-पास इस मंदिर में चोरी हुई थी। श्रीकृष्ण की बांसुरी और छत्र चोरी कर पास के ही बांकी नदी में छुपा दिए गए थे। ऐसा कहा जाता है कि चोरी करने वाले अंधे हो गए थे। चोरों ने बाद में अपना अपराध स्वीकार लिया लेकिन चोरी की गई बांसुरी और छत्र नहीं मिले। बाद में राज परिवार ने दोबारा सोने की बांसुरी और छतरी बनवाकर मंदिर में लगवाया।