नईदिल्ली। इस मासूम सी दिखने वाली वीर बालिका (छत्तीसगढ़ की अंजली सिंह गौतम) की कहानी अब सारा देश पढ़ेगा। उसकी कहानी को सीबीएसई के सिलेबस में शामिल किया गया है। 5वीं क्लास के बच्चों को उसकी कहानी सुनाई जाएगी। वो एक ऐसी बहादुर लड़की है जो अकेले ही 500 हथियारबंद नक्सलियों से भिड़ गई थी और गोलियों की बरसात के बीच अपने भाई की जान बचाई।
घटना आज से 6 साल पहले की है, जब 14 साल की अंजली नक्सली समस्या से ग्रस्त दंतेवाड़ा जिले के नकुलनार गांव में रहती थी। 7 जुलाई 2010 की आधी रात 12 बजे के आसपास उसके घर पर 500 नक्सलियों ने पूरे गांव पर धावा बोल दिया। अंजली के पिता अवधेश सिंह गौतम एक पॉलिटिकल पार्टी में लीडर होने के कारण नक्सलियों के निशाने पर थे। उनके घर पर ताबड़तोड़ गोलियां दागीं गईं। अंजली का भाई अभिजीत तब बाहर खेल रहा था। पिता अंदर कमरे में सो रहे थे। ड्राइवर और उसके मामा संजय बरामदे में सो रहे थे। नक्सलियों ने सीधे बरामदे में सोए ड्राइवर और मामा पर गोलियां दाग दीं। इस गोलीबारी में उसके मामा संजय सिंह और घर में काम करने वाले नौकर की मौत हो गई थी।
इसके बाद नक्सली दरवाजा तोड़कर अंदर घुस गए और गोलियां चलाने लगे। भाई अभिजीत के पैर में गोली लग गई। अंजली ने देखा तो अपने छोटे भाई को बचाने दौड़ी और उसे कंधे पर लाद लिया। बाकी सभी इधर-उधर भाग रहे थे। इस दौरान नक्सलियों ने बगल वाले घर को धमाका कर उड़ा दिया। अंजली को लगा कि उनके अलावा उसके घर के सारे लोग मारे जा चुके हैं। इसी हालत में अंजली अपने भाई को कंधे पर लादकर अपने दादा के घर ले गई और वहां जाकर पूरी बात बताई।
रोकते रहे नक्सली, लेकिन नहीं रुकी अंजली
नक्सली भागती अंजली को लगातार चेतावनी देते रहे कि गोली में मारी जाओगी। रुक जाओ, लेकिन अंजली नहीं रुकी। नक्सली चिल्लाकर बार-बार यही पूछते रहे थे कि तुम्हारे पिताजी कहां हैं, बता दो, मगर अंजली भागती रही। उस पर गोलियां चलाई गईं, लेकिन उसे एक भी गोली नहीं लगी। इस घटना के बाद अंजली को प्रेसिडेंट ब्रेवरी अवॉर्ड और 2012 में जोनल फिजिकल ब्रेवरी अवॉर्ड समेत कई और पुरस्कारों ने नवाजा गया। इस किस्से को सीबीएसई के पांचवीं क्लास के सिलेबस में शामिल कर लिया गया है अौर इस सेशन से पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है।