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प्रदेश के मुखिया से ऐसी उम्मीद करना ही बेवकूफी है। मैं व्यक्तिगत तौर पर इससे कतई सहमत भी नहीं हूं कि टीम के लीडर इस तरह का कोई प्रदर्शन करना चाहिए। आदर्श प्रशासक वो होता है जो अपने अधीनस्थों पर पूरा नियंत्रण करे, जिसके एक इशारे पर उसके अधीनस्थ जान जोखिम में डाल दें, जो बिना मैदानी प्रदर्शन किए पूरी लड़ाई जीत ले, परंतु यह तो राजनीति है। यहां मैनेजमेंट के फंडे बेकार हो जाते हैं। मुझे बड़ा अजीब लगा जब सिंहस्थ में पाइप पर चढ़कर मेरे प्रदेश का मुख्यमंत्री टेंट बांध रहा था। यह एक लोकलुभावन फोटो हो सकता है परंतु इसमें नेतृत्व की बिफलता भी प्रमाणित होती है। सवाल यह था कि क्या सिंहस्थ में काम करने के लिए कोई नहीं बचा था जो सीएम को पाइप पर चढ़कर टेंट बांधना पड़ा। कैसा प्रबंधन था सिंहस्थ मेले का। यदि इतना ही खराब था तो पाइप से उतरते ही मेला प्रबंधक को सस्पेंड क्यों नहीं कर दिया गया।
खैर, असली वजह जो भी हो लेकिन यदि सिंहस्थ में पाइप पर चढ़े तो भोपाल में पानी में भी उतरना चाहिए था। यहां के नागरिकों ने कौन सा पाप किया है जो शिवराज सिंह खुद मदद करने नहीं आए। आप यह भी नहीं कह सकते कि भोपाल की भारी बारिश उनके लिए खतरनाक थी। वो तो नर्मदापुत्र हैं। लहरों से खेलकर बढ़े हुए हैं। यह उनके कौशल प्रदर्शन का सबसे सही समय था। फिर क्यों वो सारी रात इंतजार करते रहे, क्यों सुबह पानी कम होने तक रुके और क्यों किनारे से दिलासे देते रहे। उन्हे याद रखना चाहिए कि यदि वो हाथ बढ़ाएंगे तो लोग हाथ थामेंगे भी और अगली बार उससे ज्यादा की उम्मीद भी करेंगे। परीक्षा के पैमाने बदल जाएंगे। 'नायक' बनना कोई पार्टटाइम जॉब नहीं। इसे हमेशा निभाना होगा।