गजेन्द्र सिंह पटैल। भाजपा और संघ मिलकर मध्यप्रदेश के एक होते अधिकारी-कर्मचारियों को जाति के आधार पर बांटना चाहते हैं। कुछ दिनों पूर्व संघ का बयान आया था कि 'देश से आरक्षण खत्म होना चाहिए।' संघ की बात सही भी है क्योंकि उसका मकसद हमेशा से सवर्णों और ब्राह्मणों को ही देश में सर्वोच्च स्थान देना रहा है। इसी तरह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री नन्दकुमार चौहान ने भी आरक्षण खत्म करने की बात कही थी। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का बयान 'आया कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता।' इन बयानों में भले ही सामान्यतः विरोधाभास नजर आता हो लेकिन ये दोनों बयान प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारियों को बांटने की राजनीति का अहम पहलू है।
दरअसल मध्यप्रदेश के अधिकारी-कर्मचारी प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ लामबंद होने लगे थे, जैसे शिक्षकों ने एक होकर अपनी मांगे मनवाने के लिए उग्र आंदोलन किया, पंचायत कर्मियों ने कलमबंद हड़ताल की, इसी तरह अन्य विभागों के अधिकारी-कर्मचारी बिना किसी जातिभेद के एक होकर सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने लगे थे जिसकी परिणति अगले चुनावों में भाजपा की हार के रूप में सामने आती, ये बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत भाजपा तथा संघ के लोग समझ चुके थे। इसीलिए इस तरह के बयान देकर अधिकारी-कर्मचारियों को बांटने की चाल चली और उनकी चाल सपाक्स एवं अजाक्स के लामबंद होने से कामयाब होती दिख रही है।
सपाक्स सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों का संगठन है जबकि अजाक्स अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के अधिकारी-कर्मचारियों का संगठन है। प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारियों को भाजपा और संघ की इस चाल को समझकर अपने हितों का खयाल रखते हुए ही कोई कदम उठाना चाहिए क्योंकि आजतक कोई भी लड़ाई सिर्फ जातियों के आधार पर लड़कर नहीं जीती गई बल्कि सभी जातियों और धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलने से ही सफलताएँ प्राप्त हुई हैं।
लेखक-
गजेन्द्र सिंह पटैल
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