राकेश दुबे@प्रतिदिन। आयकर विभाग ने विदेश में जमा लगभग 13,000 करोड़ रुपये के काले धन का पता लगाया है और यह काला धन विदेशी बैंकों में रखने वालों पर कार्रवाई शुरू की है। इससे कई सवाल भी जुड़े हुए हैं। 8,186 करोड़ रुपये का पता तो उस जानकारी के आधार पर लगा, जो सन 2011 में फ्रांस सरकार ने भारत सरकार को दी थी और जिसमें हांगकांग ऐंड शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन (एचएसबीसी) बैंक में भारतीयों के कुछ खातों की जानकारी थी। 700 भारतीयों के 5,000 करोड़ रुपये की जानकारी भी एचएसबीसी के ही खातों से जुड़ी थी, जो खोजी पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने सन 2013 में खोज निकाले थे।
विदेशों में जो भारतीय काला धन होने का अनुमान है, उसका यह काफी छोटा हिस्सा समझ में आता है । यह जानकारी भी काफी पुरानी है और इस पर कार्रवाई में भी काफी वक्त लगा है। ऐसे में, विदेश में काला धन रखने वालों ने बाकी पैसे का इंतजाम अच्छी तरह कर लिया होगा। इन दोनों ही सूचियों को हासिल करने में हमारी सरकारी एजेंसियों की कोई भूमिका नहीं है, वे दूसरों ने हमें सौंपी हैं। इस बीच भारतीय एजेंसियों ने विदेशों में रखे काले धन की खोज के लिए कोई बड़ी मुहिम नहीं चलाई है।
भारत में काले धन के खिलाफ शिकंजा कस रहा है, लेकिन इसकी गति काफी धीमी है। काले धन को लेकर पिछले दिनों बनाए गए कानून ने उसके खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई को ज्यादा प्रभावशाली बनाने का रास्ता आसान कर दिया है, लेकिन इसके खिलाफ जंग छेड़े जाने की जरूरत है। यह विचार काफी सनसनीखेज लगता है कि विदेशों के बैंकों में भारत का लाखों करोड़ों रुपये का काला धन पड़ा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ज्यादातर काला धन पड़ा नहीं रहता, बल्कि अलग-अलग तरीकों से भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में आवाजाही करता रहता है। इसका सबसे बड़ा तरीका काले धन के ठिकानों से फर्जी कंपनियों के जाल के जरिये भारत के शेयर बाजार में निवेश है। शेयर बाजार के जरिये मुनाफा कमाकर यह पैसा वापस विदेश जाकर इसी चक्रव्यूह के जरिये फिर भारत आता रहता है। इसके अलावा, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में भी यह काला पैसा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है।
इस दुश्चक्र को रोकने का सबसे बड़ा तरीका यही हो सकता है कि भारत में काले धन के पैदा होने और अर्थव्यवस्था में इनके इस्तेमाल होने पर रोक लगे। अगर भारत में लोग काला पैसा बनाते रहे, तो उसे विदेश जाने व फिर भारत आने से रोकना बहुत मुश्किल है, क्योंकि काले धन का सुरक्षित ठिकाना बने सभी देशों को काले धन की अर्थव्यवस्था छोड़ने या उसे नियंत्रित करने के लिए मजबूर करना बहुत मुश्किल है। इसी तरह, अमेरिका जैसा देश तो अंतरराष्ट्रीय बैंकों पर काले धन का कारोबार न करने के लिए दबाव डाल सकता है, लेकिन भारत के लिए यह बहुत आसान नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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