Motivational story in Hindi - ईश्वर उपासना की आवश्यकता क्यों ?

ईश्वर "उपासना" से मनुष्य को वह स्थिति प्राप्त होती है जहाँ से वह अधिक सूक्ष्मता, दूरदर्शिता एवं विवेक के साथ संसार और उसकी परिस्थितियों का निरीक्षण करता है। अपने ही क्षुद्र अहंकार से संसार की तुलना करने से मनुष्य के प्रत्येक कार्य में संकीर्णता रहती है, संकीर्णता के कारण आत्मा अपनी विशालता का अपनी शक्ति और सामर्थ्य का आनन्द नहीं लूट पाती। मनुष्य तुच्छ सा बना रहता है, ठीक उसी तरह जिस तरह सृष्टि के अन्य जीव-जन्तु आत्मा के सच्चे स्वरूप के ज्ञान के लिये वह ऊँचाई अपेक्षित है जो ईश्वर उपासना से मिलती है। सही लक्ष्य का ज्ञान उस स्थिति का बार-बार मनन किये बिना प्राप्त नहीं होता।

जब भी कोई ईश्वर "उपासना" के लिए तत्पर होता है तो वह इस आधार को ही लेकर चलता है कि इस संसार की कोई मुख्य नियामक शक्ति अवश्य होनी चाहिए, प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई रचयिता होता है, विश्व का तब सृजनहार भी कोई होगा अवश्य। जब इस तरह की मान्यता अन्तःकरण में उत्पन्न होती है तो तत्काल मनुष्य के सोचने के ढङ्ग में परिवर्तन होता है। अब तक वह जिन वस्तुओं से अनावश्यक लगाव रख रहा था अब उनके प्रति कौतूहल पैदा होता है। अब तक जो वस्तुएँ उसे सामान्य सी प्रतीत होती थीं अब उनमें विशद विज्ञान भरा दिखाई देने लगता है। इस तरह मनुष्य का ज्ञान विकसित होता है और विश्व के सच्चे रूप को जानने की छटपटाहट भी। यह दोनों बातें मनुष्य के सही लक्ष्य के चुनाव के लिए आवश्यक थीं। दोनों ही ईश्वर की "उपासना" से मिलती हैं।

तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे

एक छह साल के बच्चे को गणित पढ़ाने वाली एक टीचर ने पूछा, "अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूं, तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे"
कुछ पल के भीतर ही लड़के ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "चार!" 
टीचर एक सही उत्तर (तीन) की अपेक्षा कर रही थी। उत्तर सुनकर हताश हो गई।
"हो सकता है कि बच्चे ने ठीक नहीं सुना हो," उसने फिर अपना प्रश्न दोहराया, “ध्यान से सुनें बेटा यह बहुत सरल है।
अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूं, तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे ”

क्योंकि छात्र ने पुनः प्रयास किया, उसने अपनी उंगलियों पर फिर से गणना की,इस बार झिझकते हुए उसने उत्तर दिया, "चार " टीचर के चेहरे पर निराशा छा गई।
टीचर को याद आया कि लड़के को स्ट्रॉबेरी बहुत पसंद है। अतिरंजित उत्साह और टिमटिमाती आँखों से इस बार उसने पुनः पूछा ... "बेटा अगर मैं आपको एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी देती हूं, तो आपके पास आपके बैग में कितनी होंगी "

शिक्षिका को खुश दिख रही थी , बच्चे पर कोई दबाव नहीं था, लेकिन टीचर पर थोड़ा सा था।वह चाहती थी कि उसका ये नया दृष्टिकोण सफल हो जाये।
एक संकोच भरी मुस्कान के साथ, बच्चे ने उत्तर दिया, तीन शिक्षिका के चेहरे पर अब विजयी मुस्कान थी। उसका दृष्टिकोण सफल हो गया था।
मन ही मन वह खुद को बधाई देना चाहती थी लेकिन एक आखिरी बात रह गई थी।एक बार फिर उसने बच्चे से पूछा, "अब अगर मैं तुम्हें एक सेब और एक सेब और एक और सेब दूं तो तुम्हारे पास तुम्हारे बैग में कितने होंगे?"

बच्चे ने तुरंत जवाब दिया "चार!"

*”कैसे! मुझे बताओ कैसे " उसने थोड़ी सख्त और चिड़चिड़ी आवाज़ में मांग की
एक धीमी सी आवाज़ में जिसमे हिचकिचाहट थी, बच्चे ने जवाब दिया, "क्योंकि मेरे बैग में पहले से ही एक सेब है।"
इसी प्रकार जब कोई आपको, आपकी उम्मीद से अलग जवाब देता है तो यह आवश्यक नहीं है कि वही गलत हैं ; एक ऐसा कोण हो सकता है जिसे आप बिलकुल भी नहीं समझ पाए हों। हमें विभिन्न दृष्टिकोणों की सराहना और समझना सीखना चाहिए। अक्सर, दूसरों पर अपना दृष्टिकोण थोपते हैं और फिर सोचते हैं कि क्या गलत हुआ।

अगली बार जब कोई आपको आपसे अलग दृष्टिकोण दे, तो बैठकर धीरे से पूछें "क्या आप मुझे इसे पुनः समझाने का प्रयत्न कर सकते हैं" फिर उसे पूरा सुने, उसको उसके दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करें।
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