गैरतगंज। माध्यमिक शिक्षा मंडल बोर्ड मप्र का एक और कारनामा सामने आया है। मंडल ने एक टॉपर छात्र को फिसड्डी की मार्कशीट थमा दी। उसे 77 नंबर मिले थे, मार्कशीट में 17 दर्ज कर दिए। गजब देखिए कि रीटोटलिंग अप्लाई करने पर भी मंडल ने परिणाम नहीं बदला। वा तो बालक का आत्मविश्वास ही था कि उसने अपनी उत्तरपुस्तिका की जांच कराई तब जाकर खुलासा हुआ।
जानकारी के मुताबिक नगर के एचपी पब्लिक हायर सेकेण्डरी स्कूल में पढने वाले 10वी कक्षा के छात्र कृपाल साहू पुत्र राजकिशोर साहू निवासी ग्राम घाना द्वारा इस वर्ष वार्षिक परीक्षा दी गई थी। बाद में परिणामों में कृपाल को बोर्ड द्वारा अंग्रेजी विषय में 17 अंक देकर पूरक घोषित कर दिया था। वहीं अन्य सभी विषयों में उसे विशेष योग्यता मिली। परिणाम आने के बाद कृपाल ने अपने आप पर विश्वास जताते हुए एमपीआनलाइन से दोबारा कापी चेक करने सहित उत्तरपुस्तिका प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत किया। कुछ दिनों बाद रीटोटलिंग के परिणाम में भी कोई बदलाव नही हो सका।
कृपाल ने उत्तरपुस्तिका के आवेदन पर इंतजार करते हुए उसके पोस्ट द्वारा आने की राह देखी परन्तु एक माह की समयावधि निकल जाने के बाबजूद उत्तर पुस्तिका नही आई। तब वह अपने पिता राजकिशोर साहू के साथ भोपाल स्थित बोर्ड आफिस के कार्यालय पहुंचा तथा उत्तरपुस्तिका नही आने की शिकायत की। शिकायत के बाद कार्यालय में मौजूद कर्मियों ने कृपाल को उसकी अंग्रेजी विषय की उत्तरपुस्तिका दिखाई तो उसमें 17 के स्थान पर 77 अंक लिखे पाए गए। तब कहीं जाकर कृपाल ने चैन की सांस ली।
महिने भर हुआ परेशान, मिली दुत्कार
कृपाल के रिजल्ट के प्रकरण में गौर करने लायक पहलू यह है कि रिजल्ट आने के बाद योग्य होने के बाबजूद पूरक प्राप्त होने पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने की तैयारी कर रहा था। परन्तु उसकी घबराहट को परिजनों ने शांत किया। तथा दोबारा उत्तरपुस्तिका की जांच कराने का कहकर किसी तरह उसे इस कदम से रोका। बाद में भी कृपाल को परेशानियों का सामना करना पडा। उसे बोर्ड आफिस में उत्तरपुस्तिका की जांच एवं उत्तरपुस्तिका भेजने के नाम पर एक महीने परेशान किया गया। कई बार तो बोर्ड आफिस के कर्मचारियों ने उसे दुत्कारा भी परन्तु कृपाल एवं उसके परिजनों के हौसले ने आखिर उन्हे न्याय दिलाया। और वह अब प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण है।
सवाल यह है कि ऐसी बेवकूफियां करने वाले कर्मचारियों के लिए बोर्ड कार्रवाई क्यों नहीं करता। इसे केवल क्लेरिकल मिस्टेक मानकर केस को क्लोज नहीं किया जा सकता। ऐसी गलतियों के कारण ही कई छात्र आत्महत्याएं कर लेते हैं और उनकी मौत के जिम्मेदार मजे से नौकरियां करते रहते हैं। इस मामले में संबंधित अधिकारियों के लिए कड़ी कानूनी कार्रवाई बहुत जरूरी है।
इनपुट: राकेश गौर