
हालांकि चार वरिष्ठ उपाध्यक्षों की नियुक्ति कर हाईकमान ने जातीय समीकरणों को भी साधने की कोशिश की है। उप्र के चुनाव में भूमिका निभाने की तैयारी कर रहीं प्रियंका गांधी ने भी राजबब्बर को कमान सौंपने पर मुहर लगा दी। हालांकि भविष्य में चुनाव अभियान समिति का चेहरा ब्राह्ममण को बनाने का विकल्प खुला है।
पार्टी के विश्र्वस्त सूत्रों के अनुसार शीला दीक्षित, जितिन प्रसाद और राजेश मिश्रा सरीखे ब्राह्ममण चेहरों के नामों पर खूब चर्चा हुई। शीला दीक्षित को संगठन की कमान देना इसलिए मुनासिब नहीं समझा गया क्योंकि उप्र कांग्रेस के निचले स्तर तक उनका कोई खास संवाद नहीं है। जितिन प्रसाद की दावेदारी गंभीर जरूर रही मगर आक्रामक राजनीति की मौजूदा जरूरत के मद्देनजर उनकी सौम्यता ही उनके आड़े आ गई। तो राजेश मिश्रा की उम्मीदवारी को भी मौजूदा चुनावी परिदृश्य में मुफीद नहीं आंका गया।
उन्हें वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाकर ब्राह्ममणों को संदेश देने की कोशिश भी की गई है। गुलाम नबी आजाद ने उप्र के सियासी समीकरणों पर मंथन के बाद हाईकमान को इस बात के लिए राजी कर लिया कि सपा, बसपा और भाजपा की आक्रामक राजनीति को देखते हुए राजबब्बर ही बेहतर चेहरा होंगे। प्रियंका गांधी ने मंगलवार को प्रदेश के प्रभारी वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के घर जाकर घंटे भर की लंबी चर्चा की। इसके बाद ही शाम को आजाद ने बब्बर के नाम का एलान कर दिया।
राजबब्बर के पक्ष में यह भी तर्क काम कर गया कि उनकी एक स्टार पावर अपील है और उप्र में वह अनजाना चेहरा नहीं हैं। खत्री समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बब्बर सभी वर्गों को कांग्रेस की ओर जोड़ने की क्षमता रखते हैं। वैसे दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के नामों पर भी विचार हुआ। लेकिन सपा और बसपा के कोर राजनीतिक वोट बैंक को देखते हुए इस चुनाव में ऐसे प्रयोग से बचने को ही सही माना गया है।