ऋषिकेश में स्थित बाबा वीरभद्रेश्वर का मंदिर शिव के रौद्र रूप का प्रतीक है। यहां शिव के गण विरभद्र ने शिव की जटा के बाल से उत्पन्न होकर राजा दक्ष के यज्ञस्थल का विध्वंस किया था।यह स्थान पुरातत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
ऋषिकेश के आईडीपीएल फैक्ट्री क्षेत्र में बाबा वीरभद्रेश्वर का प्राचीन मंदिर भोले बाबा के रोद्ररूप का प्रतीक है। इस मंदिर में भगवान की पूजा के लिए लाखों श्रद्धालुओं का साल भर तांता लगा रहता है। प्राचीन मंदिर के साथ पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है मान्यता है कि इस स्थान पर दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ किया था जब सती(उमा) को पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो उन्होंने भगवान शंकर को भी महायज्ञ में चलने के लिए कहा लेकिन निमंत्रण न होने पर भगवान शंकर ने महायज्ञ में नहीं आए।
अपने दो गंणो के साथ सती को यज्ञ में भेज दिया। जब सती महायज्ञ में पहुंची तो भगवान शिव के लिए स्थान नहीं देख अपने पिता दक्ष से कारण पुछा तो जब उन्होंने देखा कि दक्ष ने शिव का अपमान किया है। वहीं सती ने यज्ञ की अग्नि में समा गईं। जिससे बाद भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपने क्रोध और केश से विरभद्र नाम के गण की उत्पत्ति की और विरभद्र ने महायज्ञ का विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर यज्ञ की अग्नि में डाल दिया।
प्राचीन काल से ही शिव भक्तों की इस मंदिर इस पर अपार श्रद्धा है। इसी कारण इस स्थान के साथ ही आईडीपीएल फैक्ट्री और रेलवे स्टेशन का नाम भी वीरभद्र पड़ा। भारतीय पुरातत्व विभाग ने साल 1973 से 1975 तक इस स्थान के आस-पास खुदाई करके पहली सताब्दी से आठवीं शताब्दी के पुराने ढबे मंदिरों के अवशेष निकाले। खुदाई वाले स्थान की बुनियाद को देखकर बोल सकते है कि यहा कई कक्षों वाला विशाल शिव मंदिर रहा होगा।
हजारो वर्ष पुराने विशाल मंदिर के अवशेष के नाम पर केवल बुनियाद ही सुरक्षित है। साथ ही यज्ञ का चबूतरा, नंदी बैल का स्थान, भगवान शंकर और देवी देवताओं की मूर्तियों को पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया है मंदिर के निकट खेतों में छोटे-छोटे मंदिर और सैकड़ों विशाल शिवलिंग इस बात का संकेत देते हैं कि कभी यह क्षेत्र मंदिरों का नगर रहा होगा। हजारों साल पुराने इस अवशेष के पास ही नया वीरभद्र मंदिर स्थित है। जहां भक्त आज भी पूजा अर्चना करते हैं।