नईदिल्ली। लोकतंत्र में आस्था रखने वाला एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं मानना चाहिए जब तक कि बार-बार यह प्रमाणित ना हो जाए। इसलिए हर निर्णय के बाद अपील के रास्ते खुलते हैं इसके अलावा वो कितना भी जघन्य अपराध क्यों ना करे, सजा देते समय यह जरूर देखा जाना चाहिए कि उसमें सुधार की गुंजाइश बची है या नहीं। इसीलिए सजा-ए-मौत में राष्ट्रपति महोदय तक सुनवाई होती है, परंतु महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे शरीयत जैसा कानून पसंद करते हैं, जिसमें अपील की कोई गुंजाइश ही ना हो, सजा भी इतनी कड़ी कि वो दहशत का कारण बन जाए।
उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ गंभीर अपराधों पर नियंत्रण के लिए शरीयत (इस्लामिक) जैसे कानून की जरूरत है। ऐसे लोगों के हाथों और पैरों को काट डालना चाहिए जो नाबालिगों और महिलाओं से बलात्कार और उनकी हत्या करते हैं।
बता दें कि अहमदनगर जिले के कोपर्डी गांव में 13 जुलाई को तीन लोगों ने 15 वर्षीय एक लड़की के साथ बर्बर तरीके से बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी। ठाकरे इसी परिवार से मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। उन्होंने इस बात पर ध्यान दिलाते हुए कहा, हमारी सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं में फैसला आने में अनावश्यक रूप से लंबा वक्त लग जाता है और इससे परोक्ष रूप से अपराधियों का हौसला बढ़ता है।
एडवोकेट शेलेन्द्र गुप्ता का कहना है कि बहुत से लोग राज ठाकरे के इस बयान से सहमत हो सकते हैं, परंतु वो मूल रूप से न्याय प्रक्रिया में होने वाले अनावश्यक विलंब से नाराज होते हैं। न्यायालयों में लाखों केस पेंडिंग हैं और सरकारें बढ़ते मामलों को निपटाने के लिए ना तो नए न्यायालयों का गठन कर रहीं हैं और ना ही न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जा रही है। कानून बदलने की मांग करने से बेहतर होगा, न्यायालयों की संख्या बढ़ाने की मांग की जाए। ताकि शीघ्र न्याय मिल सके।