
सरकारी मशीनरी और नीति नियंताओं को यह बात भी भली-भांति सोचनी समझनी होगी कि इस महती योजना में हमें जनता को भी जोड़ना होगा। जनसहभागिता जरूरी है। जब तक यह नहीं किया जाएगा, गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाना नामुमकिन है; क्योंकि तकरीबन 50 करोड़ की आबादी गंगा किनारे बसती है और उनमें यह समझ विकसित करना सरकार के लिए भगीरथी प्रयास सरीखा ही होगा। यह भी जगजाहिर है कि गंगा में औद्योगिक कचरा डालने और सीवर ट्रीटमेंट के बाद पानी ने गंगा की पवित्रता को ज्यादा क्षति पहुंचाई है। इससे इतर, सफाई के मसले पर सियासत ने भी गंगा को साफ रखने के ध्येय को डगमगाया है।
संदेश साफ होने चाहिए कि राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े मसलों पर राजनीति करना समझदारी नहीं है. चूंकि गंगा सिर्फ नदी नहीं हमारी आस्था का केंद्रबिंदु है। हमारी परंपरा और विचारबिंदु का चरम है। इस नाते, सिर्फ योजनाओं के सहारे नदी को पवित्र करने का संकल्प शुतुरमुर्गी चाल के अलावा कुछ भी नहीं है. हां, सरकार को यह भी समझना होगा कि गंगा को लेकर जनता की आस्था जिस तरह से है, उसका इस्तेमाल भी उसी तरीके से हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए