ओबीसी के लिए गिफ्ट तैयार कर रही है मोदी सरकार

Bhopal Samachar
नईदिल्ली। मोदी सरकार यूपी चुनाव और इसके बाद शुरू होने जा रहे चुनावी सीजन से पहले मोदी सरकार हर हाल में कौना कौना मजबूत कर लेना चाहती है। सवर्ण वोटों पर तो बीजेपी अपना कॉपीराइट मानती ही है, दलितों को लुभाने के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री समेत तमाम मुख्यमंत्री खुद काम पर लगे हुए हैं। रहा सवाल ओबीसी का तो उनके लिए भी एक गिफ्ट तैयार किया जा रहा है। अब यह गिफ्ट ओबीसी को पसंद आएगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। 

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से तैयार प्रस्ताव के अनुसार ओबीसी की आरक्षण के लिए अधिकतम सीमा 6 साल से बढ़ाकर 8 लाख की जा सकती है। बीजेपी अगले साल होने वाले राज्य चुनावों में ओबीसी वोटरों को लुभाने की तैयारी में है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में, जहां ओबीसी कुल जनसंख्या का 40 फीसद हैं। मौजूदा समय में सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में और उच्च शिक्षा में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। हालांकि इसके साथ सालाना आय 6 लाख से कम होनी चाहिए। 

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक 12 अगस्त को मानसून सत्र खत्म होने के बाद कैबिनेट इस प्रस्ताव को मंजूर कर सकता है। 1980 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की आबादी देश की जनसंख्या का 52 फीसद है। हालांकि इस रिपोर्ट में आंकड़े 1931 में हुई जनगणना से लिए गए थे। 80 सालों बाद 2011 में एक बार फिर जाति जनगणना हुई, लेकिन सार्वजनिक हो पाई। 

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) ने 2006 में ओबीसी की जनसंख्या 41 फीसद बताई थी। हालांकि इसे प्रामाणिक नहीं माना गया क्योंकि एनएसएसओ उपभोग व्यय को दर्ज करता है, जनसंख्या को नहीं। 

आखिरी बार 2013 में क्रीमीलेयर इनकम कैप की समीक्षा हुई थी, जब इसे 4.5 लाख से बढ़ाकर 6 लाख किया गया था। 2015 में कार्मिक विभाग ने मंत्रालय से ओबीसी क्रीमीलेयर की समीक्षा की सिफारिश की थी। मंत्रालय ने इस काम को नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास (एनसीबीसी) को सौंप दिया। एनसीबीसी ने इसे 6 लाख से बढ़ाकर 15 लाख सालाना करने की सिफारिश की। 

मंत्रालय ने इसे संशोधित कर 8.16 लाख सालाना कर दिया। सूत्रों के मुताबिक यह आंकड़ा थोड़ा और कम हो सकता है। एनसीबीसी की सिफारिश ग्रुप ए अधिकारियों की सैलरी पर आधारित है। अधिकारियों का कहना है कि कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर आय की सीमा संशोधित की गई है। 

एनसीबीसी के सदस्य अशोक कुमार सैनी ने कहा, 'जातिगत आरक्षण के 23 सालों बाद भी आंकड़े बताते हैं कि कई विभागों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व 0-12 प्रतिशत है। ऐसा क्रीमीलेयर के लिए सालाना आय की अवास्तविक गणना के चलते हुआ है। हालांकि उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि सालाना आय की सीमा को 8 लाख तक बढ़ाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 

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