राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमंत्री ने कहा है कि अनावश्यक सुर्खियां पाने से कुछ हासिल नहीं होता है| प्रधानमंत्री के इस संदेश के बाद आम धारणा यही है कि स्वामी मंच से नौकरशाहों पर हमले के मंचन का अब पटाक्षेप हो जाना चाहिए. स्वामी के स्वभाव को जानने वाले अभी निश्चयात्मक तौर पर कुछ नहीं कह सकते. वैसे सच यह भी है कि स्वामी ने जिस तरह से तीन नौकरशाहों को एक-एक कर निशाना बनाया उसका समर्थन भाजपा एवं संघ परिवार में भी है|
सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाएं इसका प्रमाण हैं कि स्वामी के इस हमले के समर्थकों की बड़ी संख्या है| यह प्रश्न विश्लेषकों के मन में उठता रहा है कि आखिर स्वामी उन्हीं नौकरशाहों को निशाना क्यों बना रहे हैं जिनका संबंध वित्त मंत्रालय से है? क्या स्वामी नौकरशाहों के बहाने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर निशाना साध रहे थे? इस पर लगभग एक राय है कि स्वामी के असली निशाने पर वित्त मंत्री ही हैं|अगर ऐसा है तो क्या प्रधानमंत्री के इतना कहने से वे रुक जाएंगे? थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी| वैसे प्रधानमंत्री ने स्वामी का कहीं नाम नहीं लिया है| स्वामी ने ऐसे समय राजन पर हमला किया था जब उनके दूसरे कार्यकाल पर फैसला होना था|
सरकार की ओर से भी यह संदेश था कि उनको दूसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा और इसे देखते हुए राजन ने खुद कह दिया कि वो कार्यकाल खत्म होने के बाद अध्यापन की ओर लौट जाएंगे| आम लोगों के बीच संदेश यही गया कि स्वामी के हमले का ही यह परिणाम है| सच क्या है, ये तो प्रधानमंत्री व वित्तमंत्री ही जानते होंगे| वैसे स्वामी के हमले के बाद राजन के बचाव में सरकार की तरफ से कोई नहीं आया था| जेटली भी सामने तब आए जब उनके साथ काम करने वाले दो बड़े अधिकारियों को स्वामी ने निशाना बनाया| यह सच है कि देश की आर्थिक नीतियों के निर्धारण में लंबे समय से वैसे लोगों की भूमिका रही है जो विदेशों में पढ़े-लिखे, वहां के अनुसार आर्थिक सोच रखते हैं तथा विदेशी वित्तीय संस्थाओं में काम कर चुके हैं| इनकी खिलाफत कई मंचों से होती रही है. वाजपेयी सरकार के समय भी संघ परिवार के घटक ऐसे लोगों का विरोध करते थे स्वामी का विरोध नया नहीं है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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