राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के फैसले को गलत और असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही अदालत ने 15 दिसंबर 2015 से पहले वाली स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया है। तत्समय अरुणाचल प्रदेश में नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी जिसे दिसंबर में बर्खास्त कर दिया गया था। कांग्रेस विधायक दल में बगावत के चलते नबाम तुकी सरकार का बहुमत संदिग्ध हो गया था आज भी इस स्थितिमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
तब राज्यपाल ने जो किया, उसे कतई निष्पक्ष और उनके पद के संवैधानिक दायित्व के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। राज्यपाल ने विधानसभा का सत्र आहूत किया। इस बारे में न मुख्यमंत्री से परामर्श किया न विधानसभा अध्यक्ष से। विधानसभा का सत्र राज्यपाल के दखल से वह एक महीना पहले ही बुला दिया गया। एक और अपूर्व बात यह हुई कि विधानसभा का वह सत्र एक कम्युनिटी हॉल में संपन्न हुआ, जिसमें कांग्रेस के सैंतालीस में से इक्कीस विधायकों और भाजपा विधायकों ने मिल कर मुख्यमंत्री नबाम तुकी और विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया को पद से हटा दिया था। इस नाटक का अंत अभी नहीं हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने दिल्ली के अरुणाचल भवन में एक तरफा काम सम्भाल लिया है।
संविधान पीठ ने अपने फैसले में टिप्पणी की है कि राज्यपाल को किसी तरह के मतभेद, सियासी झगड़े, दलगत असंतोष और टूट-फूट से परे होना चाहिए। यों इस तकाजे को राजखोवा भी समझते होंगे, पर शायद उन्हें केंद्र के अपने आकाओं को खुश करना था। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद क्या उन्हें अपने पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार रह गया है? अरुणाचल प्रदेश में मिली कामयाबी से उत्साहित भाजपा ने उत्तराखंड में भी वैसा ही खेल दोहराने की कोशिश की, पर वहां बागी कांग्रेस विधायकों से हाथ मिला कर हरीश रावत सरकार को अस्थिर करने का उसका दांव बेकार गया। बारह मई को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को खारिज और रावत सरकार को बहाल कर दिया। इसके दो महीने बाद अरुणाचल के मामले में भी कांग्रेस को कानूनी जीत हासिल हुई है।
अलबत्ता यह सवाल जरूर उसके सामने है कि विधानसभा में वह बहुमत कैसे साबित करेगी? जो हो, संविधान पीठ का फैसला बहुमत की दावेदारी से संबंधित नहीं है, बल्कि यह राज्यपाल के पद के दुरुपयोग के खिलाफ है। अनुच्छेद तीन सौ छप्पन के बेजा इस्तेमाल के लिए कांग्रेस को भाजपा कोसती आई थी। लेकिन कैसी विडंबना है कि कांग्रेस-मुक्त भारत का दम भरते हुए भाजपा ने कांग्रेस का ही अनुसरण किया है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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