नईदिल्ली। भारत ने चीन के 3 सरकारी पत्रकारों की वीजा अवधि बढ़ाने से इंकार कर दिया। तीनों चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिंहुआ के पत्रकार हैं। इस मामले में चीन सरकार और शिंहुआ की ओर से कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई, अलबत्ता वहां का एक अखबार ‘द ग्लोबल टाइम्स’ बौखला रहा है। उसने भारत को 'गंभीर परिणाम' की धमकी दी है। मात्र 15 लाख कॉपियों में छपने वाला यह अखबार करीब 200 करोड़ की आबादी वाले चीन का कितना प्रतिनिधित्व करता होगा, बताने की जरूरत नहीं।
‘द ग्लोबल टाइम्स’ के संपादकीय में कहा गया, 'ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि चूंकि चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के शामिल होने का विरोध किया, इसलिए भारत अब बदला ले रहा है। यदि नई दिल्ली वाकई एनएसजी सदस्यता के मुद्दे के चलते बदला ले रही है तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।' बता दें कि चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिंहुआ के तीन चीनी पत्रकारों की भारत में रहने की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया गया है।
जुलाई के अंत में समाप्त हो रही है वीजा अवधि
इन तीन पत्रकारों में दिल्ली स्थित ब्यूरो के प्रमुख वू कियांग और मुंबई स्थित दो संवाददाता-तांग लू और मा कियांग शामिल हैं। पत्रकारों के वीजा की अवधि इस माह के अंत में पूरी हो रही है. इन तीनों ने ही उनके बाद इन पदों को संभालने वाले पत्रकारों के यहां पहुंचने तक के लिए वीजा अवधि में विस्तार की मांग की थी।
'यह विदेशी मीडिया का निष्कासन'
संपादकीय में कहा गया कि भारत के इस कदम को कुछ विदेशी मीडिया संस्थानों ने एक ‘निष्कासन’ करार दिया है। ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने संपादकीय में कहा, 'वीजा की अवधि नहीं बढ़ाए जाने के लिए कोई आधिकारिक कारण नहीं दिया गया। कुछ भारतीय मीडिया संस्थानों का दावा है कि इन तीन पत्रकारों पर फर्जी नामों का इस्तेमाल कर दिल्ली और मुंबई के कई प्रतिबंधित विभागों में पहुंच बनाने का संदेह है।' ऐसी रिपोर्ट भी है कि इन पत्रकारों ने निर्वासित तिब्बती कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।'
'पत्रकारों को फर्जी नामों की जरूरत नहीं'
समाचार पत्र ने भारत में अपने पूर्व संवाददाता लु पेंगफेई के हवाले से कहा कि चीनी पत्रकारों को इंटरव्यू लेने के लिए फर्जी नामों का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है और संवाददाताओं के लिए दलाई लामा समूह का साक्षात्कार लेने का अनुरोध करना पूरी तरह सामान्य बात है।
संबंधों पर पड़ेगा निगेटिव असर
‘भारत द्वारा संवाददाताओं का निष्कासन एक घटिया कार्य है’ शीषर्क से छपे संपादकीय में कहा गया, 'इस कदम ने नकारात्मक संदेश भेजे हैं और इससे चीन एवं भारत के बीच मीडिया संवाद पर निस्संदेह नकारात्मक असर पड़ेगा।' इसमें दावा किया गया है कि एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध करके चीन ने कुछ अनुचित नहीं किया. उसने ऐसा करके इस नियम का पालन किया कि सभी एनएसजी सदस्यों के लिए अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करना आवश्यक है।
'चीनी वीजा प्राप्त करना भी आसान नहीं'
समाचार पत्र ने कहा, 'भारत का दिमाग शंकालु है। चीनी संवाददाता भले ही लंबी अवधि के वीजा के लिए आवेदन दें या किसी अस्थायी पत्रकार वीजा के लिए आवेदन दें, उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। भारत के साथ काम करने वाले अन्य चीनी लोगों ने भी भारतीय वीजा प्राप्त करने में मुश्किलें पेश आने की शिकायतें की हैं। इसके विपरीत, भारतीयों के लिए चीनी वीजा प्राप्त करना बहुत आसान है।' इसमें कहा गया है, 'हमें इस बार वीजा मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दिखाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। हमें कम से कम कुछ भारतीयों को यह एहसास कराना चाहिए कि चीनी वीजा प्राप्त करना भी आसान नहीं है।'