संजय कुमार सिंह। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग के सामने हाल में इंदौर के एक अस्पताल का ऐसा मामला आया, जिसमें रेडियोलॉजिस्टों ने एक गर्भवती महिला की दो बार अल्ट्रा सोनोग्राफी की लेकिन वे भ्रूण में विकृतियों का पता नहीं लगा पाए। चूंकि डॉक्टर महिला को इसके बारे में बता नहीं पाए, इसलिए वह न तो भ्रूण के समुचित विकास के लिए इलाज करा पाई और न ही उसने गर्भपात कराया। आयोग ने अस्पताल और डॉक्टरों को इस लापरवाही के एवज में शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर 15 लाख रुपये देने का निर्देश दिया। डॉक्टरों द्वारा इस तरह की लापरवाही बरते जाने के अनेक मामले हैं। लोगों में जागरूकता बढऩे और उपभोक्ता अदालतों तक आसानी से पहुंचने के कारण ज्यादा से ज्यादा मरीज ऐसे लापरवाह डॉक्टरों को अदालतों में खींच रहे हैं।
लापरवाही का सबूत मुश्किल
किसी डॉक्टर या अस्पताल के खिलाफ मामला दायर करने से पहले आपके वकील या आपके लिए यह पड़ताल बेहद जरूरी है कि मामला लापरवाही का है या नहीं। चिकित्सा की हरेक प्रक्रिया में कुछ न कुछ जोखिम होता ही है। अनहोनी को हर बार लापरवाही नहीं कहा जा सकता। मरीजों को चिकित्सा-विधिक सलाह देने वाली कंज्यूमर गाइडेंस सोसाइटी ऑफ इंडिया के मानद सचिव एम एस कामत कहते हैंं, 'चिकित्सा में लापरवाही तब कहेंगे, जब डॉक्टर इलाज के लिए तय प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।' कई मामलों को लापरवाही नहीं कह सकते। मिसाल के तौर पर पित्त की थैली में पथरी होने पर हर बार उसे निकाला नहीं जा सकता। कभी-कभी वह इस तरह से धंसी होती है कि उसे निकालना नामुमकिन होता है। रीढ़ के ऑपरेशन में भी अक्सर नाकामी हाथ लगती है। अगर डॉक्टर मानक चिकित्सा प्रक्रिया का पालन करते हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिलती है तो उन पर लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
दीवानी या उपभोक्ता अदालत
अगर आपको इस बात की तसल्ली हो गई कि यह लापरवाही का मामला है तो आपको सही मंच पर अपनी शिकायत दर्ज कराने की जरूरत है। इस मामले को लेकर आप किस अदालत में जाएंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि मामला किस तरह का है और आप क्या कार्रवाई करना चाहते हैं। मान लीजिए किसी डॉक्टर ने अपनी पेशेवर डिग्री का दुरुपयोग किया है। उदाहरण के लिए वह बाल विशेषज्ञ होने का दावा करता है, लेकिन वह है नहीं। इस तरह के मामले में आपको भारतीय चिकित्सा परिषद के पास शिकायत दर्ज कर मांग करनी चाहिए कि उस डॉक्टर को और उसे नौकरी देने वाले अस्तपाल को काली सूची में डाला जाए। अगर आपको आर्थिक नुकसान हुआ है और आप मुआवजे का दावा करना चाहते हैं तो आप उपभोक्ता अदालत या दीवानी अदालत में से किसी का रुख कर सकते हैं। लेकिन आप एक साथ दोनों में मामला दायर नहीं कर सकते। उपभोक्ता अदालत में कम खर्चा होता है और वहां की प्रक्रिया बेहद सरल है। अगर आप उपभोक्ता अदालत में जाने का फैसला करते हैं तो आपको यह निर्णय करना होगा कि कौन सी अदालत में जाना है।
किस अदालत में जाएं
अगर डॉक्टर या अस्पताल द्वारा मुहैया कराई गई सेवा का मूल्य और मुआवजे की रकम 20 लाख रुपये से कम है तो जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है। अगर यह राशि एक करोड़ रुपये से कम है तो राज्य आयोग और एक करोड़ रुपये से अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के पास शिकायत की जा सकती है। डीएसके लीगल में सीनियर एसोसिएट रिमाली बत्रा कहती हैं, 'इसमें सेवा का मूल्य और मुआवजे की राशि दोनों रकम शामिल हैं यानी शिकायकर्ता को दोनों मिलेंगी लेकिन वास्तव में अदालतें मुआवजा देने में अपने असीम विवेक का इस्तेमाल करती हैं, इसलिए पहले देखना होगा कि सेवा का मूल्य कितना है और उसी के हिसाब से अदालत का रुख करना होगा।'
आपराधिक मामला भी दर्ज करा सकते हैं
घोर लापरवाही के कारण हुए भारी नुकसान के मामले में आप डॉक्टर के खिलाफ नजदीकी पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराकर आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। इसके बाद जिला अदालत, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में न्याय पा सकते हैं। कोई ऐसा एक कानून नहीं है जिसके तहत आपको पूरा न्याय मिल सकता है। बत्रा कहती हैं, 'उपभोक्ता अदालत किसी डॉक्टर को जेल नहीं भेज सकती। यह केवल आपका खर्च वापस करा सकती है और मुआवजा भी दिला सकती है। किसी व्यक्ति को जेल तभी भेजा जा सकता है, जब आप उसके खिलाफ फौजदारी का यानी आपराधिक मामला शुरू करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कई बार साफ किया है कि कानून किसी को भी एक साथ अपने दीवानी और फौजदारी अधिकारों का इस्तेमाल करने से नहीं रोकता है।'
इलाज मुफ्त तो नहीं?
यह भी देखना होगा कि आपने चिकित्सा के एवज में फीस दी है या नहीं। मुफ्त इलाज करने वाले अस्पतालों को इससे अलग रखा गया है। पेशेंट सेफ्टी ऐंड एक्सेस इनीशिएटिव ऑफ इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक बिजॉन कुमार मिश्रा ने कहा, 'उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि मुफ्त इलाज पाने वाला व्यक्ति उपभोक्ता नहीं हो सकता और वह उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकता।' अगर डॉक्टरी सलाह मुफ्त है, लेकिन अस्पताल दवाई का पैसा लेता है तो उपभोक्ता इसकी शिकायत कर सकता है। अगर कर्मचारी को मिलने वाली चिकित्सा सुविधा के तहत यानी सीजीएचएस, ईएसआईसी और रेलवे अस्पतालों में मुफ्त इलाज कराया जाता है तो मामला कानून के दायरे में आएगा। ऐसे अस्पताल भी इसके दायरे में आते हैं जहां दो तरह के मरीज होते हैं-मुफ्त इलाज वाले और पैसे देकर इलाज कराने वाले।
संभावित बाधाएं
लापरवाही करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना मरीजों और उनके वकीलों के लिए मुश्किल काम है। एक मुश्किल यह है कि सर्जरी बंद कमरे में गुपचुप तरीके से होती है और डॉक्टरों को अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने का पूरा मौका मिल जाता है। साथ ही चिकित्सा विज्ञान भी बेहद जटिल है। ऐसे में मरीजों और उनके वकीलों को इलाज की मानक प्रक्रिया समझने में और यह पता लगाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है कि डॉक्टर ने कहां गलती की। सामान्यत: आपात प्रक्रियाएं उपलब्ध होती है। पीडि़त को यह पता चलाने की जरूरत है कि इन प्रक्रियाओं का पालन किया गया या नहीं। कामत कहते हैं, 'किसी जटिल मामले को आसान शब्दों में न्यायाधीश को बताने की जिम्मेदारी भी मरीज और उसके वकील की होती है क्योंकि अमूमन न्यायाधीश चिकित्सा विज्ञान का विशेषज्ञ नहीं होता है।' मुश्किल इसलिए भी पैदा होती है क्योंकि कोई भी डॉक्टर आम तौर पर दूसरे डॉक्टरों के खिलाफ गवाही देने के लिए राजी नहीं होता। कामत कहते हैं, 'निजी बातचीत में तो डॉक्टर आपसे कह सकते हैं कि यह लापरवाही का मामला है लेकिन वे किसी अन्य डॉक्टर के खिलाफ यही बात लिखकर देने को तैयार नहीं होते हैं।' किसी मामले पर फैसला देने के लिए न्यायाधाीश अक्सर विशेषज्ञों के हलफनामे पर निर्भर रहते हैं।
क्या कदम उठाने चाहिए
चिकित्सीय लापरवाही के मामले को कारगर ढंग से लडऩे के लिए आवश्यक रिकॉर्ड रखना बहुत जरूरी है। इंटरनेशनल कंज्यूमर राइट्स प्रोटेक्शन काउंसिल के अध्यक्ष अरुण सक्सेना कहते हैं, 'मरीजों को इलाज के समय लिखित रिपोर्ट और इलाज के लिखित ब्योरे पर जोर देना चाहिए।' बत्रा भी कहती हैं, 'लंबी बीमारी के मामले में भी, जहां आपको कई डॉक्टरों से सलाह लेनी पड़ती है, आपको पूरे दस्तावेज सुरक्षित रखने चाहिए।' जब भी आप कोई फॉर्म भरें, उसकी एक प्रतिलिपि अपने पास रखें। उन्होंने कहा, 'डॉक्टर के पास जाते वक्त लोग सोचते ही नहीं कि कोई अनहोनी घट सकती है। जब कुछ गलत हो जाता है तो वे सारे कागजात जुटाने के लिए उलटे पांव भागते हैं। याद रखिए कि डॉक्टर के पास खुद को सही साबित करने के लिए आपसे ज्यादा जानकारी है। ऐसे में सभी आवश्यक दस्तावेजों संजोकर रखना बहुत जरूरी है।' अधिकतर बड़े अस्पतालों में मध्यस्थता केंद्र हैं। आप वहां शिकायत कर सकते हैं। अगर उन्हें लापरवाही का मामला लगता है तो वे मुआवजा दे सकते हैं। हालांकि ऐसा कम ही होता है। अगर यह युक्ति काम नहीं करती है तो किसी वकील के पास जाइए जो आपके मामले को सही ढंग से समझ सके और फिर जल्दी से जल्दी कानूनी कार्रवाई शुरू कीजिए।