दिलीप कुमार/रांची। नगर के लालपुर में 200 करोड़ रुपये की ठगी के मामले में गिरफ्तार मास्टरमाइंड जितेंद्र मोहन सिन्हा वर्षों से जालसाजी करता आया है। शनिवार की शाम जेल जाने से पूर्व उसने स्वीकारोक्ति बयान में कई रहस्योद्घाटन किए। कैसे दिल्ली में बैंकों का ऋण नहीं चुकाने के कारण वह डिफॉल्टर बना और कैसे झारखंड के मेदिनीनगर में वह करोड़पति बन बैठा।
कड़ी पूछताछ में उसने पुलिस को बताया कि वह पटना सिटी के लोदी पतरा का रहनेवाला है। वर्तमान में वह रांची के बरियातू रोड स्थित पंचवटी गार्डेन के फ्लैट नंबर 412 में रह रहा था। 1997 में उसने पटना के भट्टाचार्य रोड में सीआर कोचिंग सेंटर की शुरुआत की।
पटना के मौर्या लोक में निर्मला अलंकार हाउस ज्वेलरी नामक एक दुकान शुरू की और एसएससी में नौकरी लगाने के नाम पर कई छात्रों से ठगी की। जब छात्रों को नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने दबाव बनाना शुरू किया। परेशान होकर उसने पटना की दुकान को 2002 में बेच दिया और दिल्ली चला गया।
दिल्ली के रोहिणी में उसने ज्वेलरी की दुकान खोली। वहां सिटी फाइनेंस से उसने होम लोन व एचएसबीसी बैंक से ऑफिस लोन लिया। 2003 से 2008 तक जितेंद्र दिल्ली में रहा। इसी बीच बैंक का ऋण नहीं चुकाने के कारण वह डिफॉल्टर हो गया।
नतीजा, दिल्ली से ऑफिस व फ्लैट बेचकर 2008 में जितेंद्र उत्तर प्रदेश के बरेली में पदस्थापित अपने भाई आनंद मोहन के पास पहुंच गया। वहां छह महीने रहने के बाद वह अपने मामा के घर मेदिनीनगर आ गया। असली खेल मेदिनीनगर से शुरू हुआ। यहां उसने एक एनजीओ में नौकरी शुरू की।
2009 से 2010 तक वह एनजीओ में रहा और फिर उसे छोड़ दिया। 2012 में जितेंद्र ने डीजेएन कमोडिटीज नाम से अपनी कंपनी शुरू कर ली, जिसका कार्यालय मेदिनीनगर में था। इसमें उसने राशि दोगुना-तिगुना करने के नाम पर व तीन फीसद मासिक ब्याज देने के नाम पर लोगों को जोड़ना शुरू किया। शुरुआत के महीनों में सूद देकर लोगों में विश्वास बनाया।
जब पैसे आने लगे तो उस पैसे से जितेंद्र ने लातेहार में जमीन खरीद ली। फिर उसने पटना, रांची, बोकारो, मेदिनीनगर में डीजेएन ज्वेलरी नामक दुकान की। इसके बाद कई महंगी गाड़ियां खरीदीं। इसी क्रम में विशाल व प्रशांत तथा अन्य को अपनी कंपनी से जोड़ हजारों लोगों से झारखंड व बिहार के कई शहरों में ठगी की। जालसाजी का पर्दाफाश होने पर वह भागने ही वाला था कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया।