
कुदुदंड निवासी मिथलेश राजपूत 40 वर्ष, खुशबू 15 वर्ष, जयदीप राजपूत 14 वर्ष, लूश्रीता 12 वर्ष ने जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद दायर कर बताया कि मिथलेश की पत्नी पिंकी उर्फ प्रेमलता के दाहिने हाथ के कलाई में दर्द होने पर 14 फरवरी 2013 को इलाज के लिए दयालबंद के डॉ. आरएस धीर के पास गए थे। डॉक्टर ने ब्लड टेस्ट व एक्स-रे के बाद बोन टीबी होने की जानकारी दी, साथ ही दवाइयां लिखीं। इन दवाइयों में एक प्रतिबंधित दवा स्ट्रेप्टोमाइसिन भी थी।
दवाइयों का नियमित सेवन के बाद भी जब दर्द ठीक नहीं हुआ तो 26 फरवरी को एक बार फिर महिला को लेकर चिकित्सक के पास गए। यहां फिर से दवा लिखी गई, इसे खाने के बावजूद सुधार नहीं हुआ, बल्कि बेचैनी होने लगी। इसके बाद डॉ. धीर ने इलाज करने से मना कर दिया। तब आवेदक पत्नी को डॉ. शैला मिल्टन के पास ले गया, वहां हालत नहीं सुधरने पर अपोलो अस्पताल गए, वहां विशेषज्ञ के अभाव में गायत्री अस्पताल में दाखिल किया गया। यहां बताया गया कि किडनी में गंभीर संक्रमण हुआ है, इसके कारण उसने अपनी पत्नी को श्रीराम केयर अस्पताल में भर्ती कराया जहां 4 मार्च 2013 को उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई।
परिवाद में कहा गया कि उसकी पत्नी को कभी भी बोन टीबी नहीं था, बल्कि गलत चिकित्सा व प्रतिबंधित दवा स्ट्रेप्टोमाइसिन के प्रयोग से मरीज के किडनी में संक्रमण हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। परिवाद में चिकित्सक के व्यवसायिक बीमा होने के कारण बीमा कंपनी ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड पुराना बस स्टैंड को भी पक्षकार बनाया गया था। फोरम ने पाया कि टीबी के उपचार के लिए शासन से जारी प्रपत्र के अनुसार स्ट्रेप्टोमाइसिन टीबी श्रेणी 2 की दवा है। जबकि इस मामले में डॉक्टर ने बगैर पर्याप्त जांच व पैथालॉजिकल टेस्ट के मरीज को बोन टीबी न होते हुए भी टीबी के प्रारंभिक स्टेज अर्थात श्रेणी 1 की दवा देने के बजाय सीधे श्रेणी 2 की दवा दी।
चिकित्सकीय उपेक्षा का दोषी पाते हुए फोरम ने एक माह में क्षतिपूर्ति राशि 5 लाख रुपए देने का आदेश पारित किया। साथ ही इस रकम पर 23 सितंबर 2013 से 9 प्रतिशत ब्याज देने और 5 हजार रुपए वाद व्यय के रूप में देने का आदेश दिया।