भोपाल। राजधानी सहित प्रदेश में एक साल पहले वेब बेस्ड जी-आईएस सॉफ्टवेयर के माध्यम से ई-खसरा योजना शुरू की गई है। इसमें किसानों को इंटरनेट-कियोस्क के माध्यम से डिजिटली हस्ताक्षरित खसरा की नकल उपलब्ध कराई जा रही है। किसानों के हित में इसे लागू किया गया है। लेकिन इसमें दर्जनभर से अधिक तकनीकी और व्यवहारिक खामियां हैं। इस कारण यह सुविधा किसानों के लिए दुविधा बन गई है।
अब हर खसरा नंबर की नकल के लिए किसानों को पैसे चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। सॉफ्टवेयर कंपनी द्वारा प्रति खसरा नंबर 30 रुपए लिए जा रहे हैं। एक पन्ने पर एक ही खसरा प्रिंट करके दिया जा रहा है। जबकि इसके पहले एनआईसी सॉफ्टवेयर में एक पेज पर किसान के सभी खसरा नंबर प्रिंट करके दिए जा रहे थे। अब हर किसान को अपने खसरों की नकल हासिल करने के लिए पहले से कई गुना अधिक पैसा देना पड़ रहा है।
योजना में कई समस्याएं आने से न सिर्फ किसान परेशान हैं, बल्कि प्रशासनिक अमला भी त्रस्त है। इसमें सबसे बड़ी खामी यह है कि ई-खसरा प्रोजेक्ट को संचालित करने वाली कंपनी के कर्मचारी तहसीलदार, नायब तहसीलदार और पटवारी द्वारा दर्ज प्रविष्टि को बदल देते हैं या हटा रहे हैं। सॉफ्टवेयर में बायोमेट्रिक मशीन इस्तेमाल की जा रही है, लेकिन उसमें थंब रजिस्ट्रेशन का नियंत्रण प्रोजेक्ट संचालक के पास ही है। इसलिए फर्जी तरीके से खसरों में आसानी से फेरबदल किया जा रहा है।
नहीं हो सकते संशोधन या सुधार
ई-खसरा योजना में आॅनलाइन कम्प्यूटर में उपलब्ध नक्शा, पटवारी नक्शे के स्केल पर आधारित नहीं है। इस कारण डिजिटलाइजेशन नक्शे में संशोधन या सुधार नहीं हो पा रहा है।
कहां अटका है नहीं मिलती जानकारी
ई-खसरा का आवेदन किस स्तर पर लंबित है, इस बारे में सॉफ्टवेयर में कोई विकल्प या जानकारी नहीं मिलती है। इस कारण आवेदक को मालूम ही नहीं चल पाता कि उनका आवेदन कहां अटका है। साथ ही इस सॉफ्टवेयर में इंटरनेट कनेक्टीविटी और स्पीड कम है। इससे सॉफ्टवेयर ठीक से काम नहीं कर रहा।