भोपाल। पुलिस विभाग कानूनी जानकारियों से कितना अंजान होता है और किस कदर मनमानियां किया करता है, यह मामला इसी का एक उदाहरण है। राजगढ़ पुलिस ने एक ऐसी धारा के तहत एफआईआर दर्ज कर ली जिसे सुप्रीम कोर्ट काफी पहले ही खत्म कर चुका है। यह धारा है आईटी एक्ट की धारा 66 ए।
क्या है मामला
राजगढ़ के एक अधिमान्य पत्रकार ने अपनी खुद की मेल आईडी से एक समाचार भोपाल से प्रकाशित हिंदी अखबार के मुख्यालय को भेज दिया। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। अखबारों के ईमेल पर प्रतिदिन हजारों समाचार आते हैं, जिन्हे प्रकाशित करना या ना करना संपादक के विवेक पर निर्भर करता है परंतु इस मामले में समाचार भेजना गुनाह मान लिया गया। मजेदार तो यह है कि पुलिस ने इस मामले में आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत मामला दर्ज कर लिया। जबकि इस धारा को सुप्रीम कोर्ट समाप्त कर चुका है।
क्या है धारा 66 ए
यह धारा इंटरनेट/फेसबुक/वाट्सएप पर अपमानजनक सामग्री प्रसारित करने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी। इसके तहत देश भर में कई मामले दर्ज हुए और लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालात यह बने कि नेताओं ने अपने विरोधियों को इस धारा के तहत जेल भिजवाया। विशेषज्ञों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने वाली धारा बताया और सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया
दिनांक 24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा 66 A को रद्द कर दिया। न्यायलय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया। इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस ना तो केस फाइल कर पाएगी और ना ही आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी।