अभिव्यक्ति की आजादी का फैसला न्यायालय करेगी, कोई संस्था नहीं: हाईकोर्ट | Freedom of Expression High Court

नईदिल्ली। भारतीय नागरिकों को संविधान से मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी पर मद्रास हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वो अधिकारियों को निर्देश दे कि इन मुद्दों पर उन्हें जनता से किस तरह से पेश आना चाहिए।

हाईकोर्ट ने यह दिशा-निर्देश चर्चित तमिल लेखक और प्रोफ़ेसर पेरुमल मुरुगन के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए दिए हैं। मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने मुरुगन की किताब 'मधोरुबगन' के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, "अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आजादी तब तक कायम रहेगी, जब तक कि कोर्ट उसे अनुच्छेद 19 (2) के तहत उचित प्रतिबंध के दायरे में नहीं पाता। जब किसी प्रकाशन, कला, नाटक, फ़िल्म, गाना, कविता और कार्टून के ख़िलाफ़ कोई भी शिकायत मिलती है, तो इसका ध्यान रखना चाहिए." 

तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन की याचिका
जस्टिस कौल की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, "ऐसे विवादित मामलों में शांति कायम करने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है और कोई उसका उल्लंघन नहीं कर सकता है। हमारे सामने यह स्वीकार किया गया है कि अधिकारी निश्चित तौर पर बिना किसी क़ानूनी प्रावधान के समन जारी नहीं कर सकते हैं। राज्य के किसी भी अधिकारी की कार्रवाई क़ानून के मुताबिक़ होनी चाहिए।"

हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, "यदि किसी सरकारी विभाग की ओर से इस तरह के किसी अधिकार का प्रयोग किया जाता है, तो वह ज़रूर बताएं कि किस प्रावधान के तहत उन्होंने कार्रवाई की है।क़ानून-व्यवस्था कायम रखना सरकार की ज़िम्मेदारी होती है, लेकिन ये किसी कलाकार या लेखक को अपनी राय से हटने पर मजबूर करने की इजाज़त नहीं देती।" 

किताब में विवादित टिप्पणी का मामला
फैसले में यह भी कहा गया, "इसके अलावा न्यायपालिका के रहते किसी गैर सरकारी समूह को इस बात का अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वो सही और गलत का फ़ैसला करें।" बताया जा रहा है कि पेरुमल मुरुगन को उनकी किताब 'मधोरुबगन' में लिखी कुछ विवादास्पद टिप्पणियों के लिए जिला राजस्व अधिकारी ने समन जारी किया था और उन्हें बिना शर्त माफी मांगने पर मजबूर किया गया था।

इसके अलावा मुरुगन की किताब का विरोध कई दक्षिणपंथी संगठनों के द्वारा भी किया जा रहा था। गौरतलब है कि तमिल उपन्यास 'मधोरुबगन' दरअसल तमिलनाडु के तिरुचेंगोडे के एक गरीब निःसंतान दंपति की कहानी है। यह किताब तमिल भाषा में 2011 में प्रकाशित हुई थी। विवादों में घिरने के बाद इसे अंग्रजी में पेंग्विन प्रकाशन ने 2014 में प्रकाशित किया था।

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