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याद दिला दें कि पवैया को सिंधिया विरोध के कारण ही राजनैतिक लोकप्रियता मिली थी। सिंधिया विरोधियों ने पवैया को पोषित किया और महल के खिलाफ डटे रहने की ताकत दी। राममंदिर आंदोलन के चलते सक्रिय हुए पवैया भी आंधी में उड़ते चले गए और एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने ग्वालियर से माधवराव सिंधिया जैसे दिग्गज नेता को जड़ से उखाड़ दिया। वो चुनाव जीते, सांसद भी बने, परंतु ऐसा कुछ नहीं कर पाए जो ग्वालियर के लिए सिंधिया से बेहतर रहा हो। अंतत: जनता ने उन्हे नकार दिया।
लंबे अर्से के बाद जयभान सिंह पवैया फिर से मुख्यधारा में लौटे हैं, परंतु एक बार फिर उन्हें सिंधिया विरोध की आग में झुलसाने की तैयारी शुरू हो गई है। मंत्री बनने के बाद पहली बार ग्वालियर पहुंचे पवैया के स्वागत में तमाम ऐसे नेता पहुंचे जो गुपचुप सिंधिया का विरोध किया करते हैं परंतु फ्रंटफुट पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। स्वभाविक था कि शिवपुरी विधायक व मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की इस आयोजन में कोई जरूरत नहीं थी। सूत्र बताते हैं कि उन्हें आमंत्रित भी नहीं किया गया था। बावजूद इसके प्रचारित किया जा रहा है कि यशोधरा राजे सिंधिया, पवैया का स्वागत करने नहीं आईं।
देखना रोचक होगा कि अब पवैया क्या स्टेंड लेते हैं। क्या वो मंत्रीपद मिलने के बाद ग्वालियर के विकास और अपने मंत्रालय पर ध्यान देंगे या फिर वही 'टाटा के नमक' की लाइन पर चलते रहेंगे।