
जानकारी के मुताबिक रमेश थेटे ने सामान्य प्रशासन विभाग के 12 जुलाई को उनको जारी नोटिस का जवाब आज दिया है। इसमें उन्होंने कहा कि मेरे दलित होने के कारण और मेरा कोई दोष नहीं होने के बाद भी जुलानिया के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय मुझे दंडित कर सबक सिखाने सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का शासन ने निर्णय लिया है। जिससे भविष्य में कोई दलित अन्याय-अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सके। थेटे ने आरोप लगाया है कि उनके 11 जुलाई को सुबह जुलानिया के खिलाफ दिए गए पत्र को मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव कार्यालय से लीक किया गया और दोष मुझ पर डाला जा रहा है। मुझे बदनाम करने के लिए राज्य शासन द्वारा जानबूझकर यह कृत्य किया गया।
थेटे ने पत्र में कहा है कि मेरे द्वारा जुलानिया के साथ बातचीत की रिकॉर्डिंग कर कोई भी असंवैधानिक कृत्य नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए थेटे ने जवाब में लिखा है कि अदालत के कई निर्णयों से यह स्पष्ट है कि ऐसा करने की किसी भी भारतीय नागरिक को अनुमति है। इसलिए मैंने जुलानिया के साथ हुई बातचीत को रिकॉर्ड कर न तो कोई असंवैधानिक कृत्य किया और न ही किसी आचरण नियम का उल्लंघन किया। साथ ही उन्होंने मीडिया को जानकारी देने के जवाब में लिखा है कि मैंने मीडिया से बात नहीं की बल्कि उनके द्वारा मुझे से जुलानिया के कृत्य को लेकर पूछा गया था। मैंने वैधानिका कर्त्तव्य का पालन कर उन्हें जुलानिया के अपराध की जानकारी दी। इसलिए मुझे जारी नोटिस को नस्तीबद्ध कर प्रकरण समाप्त किया जाए।
चेतावनी भी दी
थेटे ने जवाबी पत्र के अंतिम पैराग्राफ में शासन को चेतावनी दी है कि अगर राज्य शासन द्वारा संभावित अपमान के कारण यदि मेरी मौत हो जाती है तो मेरे शव को मेरी पत्नी और बेटियों को नागपुर से बुलाकर सौंप दिया जाए। इसके पहले शव को एमपी नगर स्थित बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा के सामने पांच मिनिट के लिए रखा जाए। मेरी बाबा साहब को आंबेडकरवादी के रूप में यही आदरांजलि होगी।