भोपाल। कई संदर्भों में इन दिनों भारत के हालात इंदिरा गांधी काल के समतुल्य हैं। असहिष्णुता इसी तरह का एक विषय था, उस समय भी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संघर्ष हुआ था, मोदी काल में भी इस विषय पर बहस हुई। इंदिरा गांधी के काल में भी देश में रेल हड़ताल हुई थी, मोदी काल में भी वही हालात बन रहे हैं। रेल यूनियनों ने 11 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान किया है।
रेल यूनियनों के मुताबिक 7वें वेतन आयोग को लागू करने पर उनके वेतन में विसंगतियां बढ़ जाएंगी, जिससे कई सुविधाओं में कटौती भी हो जाएगी। इसके विरोध में पूरे देश की रेल यूनियनों ने हड़ताल का ऐलान किया है। यूनियनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने अगर उनकी बात नहीं मानी तो ये हड़ताल अनिश्चितकाल तक चलेगी।
इस हड़ताल के कारण रिजर्वेशन, परिसंचालन और सिग्नलिंग के तमाम काम पूरी तरह से ठप रहेंगे। जिससे लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इस हड़ताल में कुल मिलाकर पूरे देश के 47 लाख रेल कर्मचारी और 53 लाख पेंशनर्स हड़ताल के लिए लामबंद हुए हैं।
इससे पहले इंदिरा गांधी के पीएम रहते हुए 8 मई 1974 को ऑल इंडिया रेलवेमैन के करीब 17 लाख कर्मचारियों ने वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर देशभर में हड़ताल की थी। जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में ये हड़ताल शुरू की गई थी।
20 दिन चली इस हड़ताल में इंदिरा गांधी सरकार ने हजारों लोगों को जेल भेज दिया था। बड़ी संख्या में रेलवे कर्मचारियों ने नौकरी खो दी थी। इसके बाद 27 मई को रेलवे की ये हड़ताल खत्म हो गई। 1974 से पहले 1968 और 1960 में भी रेलवे कर्मचारियों ने देशव्यापी हड़ताल की थी।