नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने भारत में इस्लामिक बैंकिंग के लिए दरवाजे खोले दिए हैं। मोदी के गृह राज्य गुजरात में सऊदी अरब का इस्लामिक डेवेलपमेंट बैंक अपनी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी की शाखा खोलने जा रहा है। इस बैंक का स्वागत केंद्र सरकार भले करे, लेकिन विश्व हिन्दु परिषद ने इस बैंक का विरोध तेज कर दिया है।
वीएचपी ने इस्लामिक बैंक को असंवैधानिक और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला करार दिया है। माना जा रहा है आने वाले दिनों में हिन्दुत्वादी संगठन पीएम मोदी को इस मुद्दे पर निशाने पर ले सकते हैं। इसी साल पीएम मोदी के यूएई दौरे के दौरान इस्लामिक डेवेलपमेंट बैंक ने भारत सरकार के एक्जिम बैंक के साथ करार किया था। इस्लामिक बैंक की गुजरात में स्थापना के पीछे पीएम मोदी के करीबी जफर सरेशवाला अहम कड़ी हैं।
गैर इस्लामिक है ‘इस्लामिक बैंक’ !
वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र कुमार जैन के मुताबिक इस्लामिक बैंक इस्लाम की शिक्षा का पालन नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लामिक बैंक दावा करते हैं कि वे न तो ब्याज लेते हैं और ना ही बचत राशी पर ब्याज देते हैं। इस्लामिक बैंक अपनी आय का श्रोत संपत्तियों की खरीद और बिक्री को बताते हैं। जैन के मुताबिक ये सरासर सट्टेबाजी है और इस्लाम में सट्टेबाजी की अनुमती नहीं है।
‘इस्लामिक बैंक असंवैधानिक है’
जैन के मुताबिक इस्लामिक बैंक की संकल्पना भारत में अवैधानिक और राष्ट्रविरोधी है। उन्होंने कहा कि केरल में इस तरह के एक बैंक को शुरु करने की कोशिश साल 2013 में हुई थी। लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी की पहल पर केरल हाई कोर्ट ने इस बैंक को भारतीय संविधान के विपरीत बताते हुए इस पर प्रतिंबध लगा दिया था। डॉ. जैन ने कहा कि इस्लामिक बैंक को भारत में लाने के लिए केंद्र सरकार को आरबीआई के नियमों में बदलाव करना होगा।
यही नहीं केंद्र को बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में भी बदलाव करना होगा। क्योंकि मौजूदा रूप में ये एक्ट इस्लामिक बैंक के कामकाज के तौर तरीकों को अनुमती नहीं देता है।
‘आतंक को बढ़ावा देगा इस्लामिक बैंक’
डॉ जैन ने कहा कि जिन देशों में इस्लामिक बैंकिंग चलन में है उनका इतिहास बताता है कि ये कहीं ना कहीं आतंकवादियों को सीधे या परोक्ष रूप से फंड मुहैया कराते आए हैं। ऐसे में पहले ही इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहे भारत में भी इस बैंक के आने से आतंक की फंडिंग बढ़ने की आशंका है।
इस्लामिक बैंकिंग क्या है, ये कैसे काम करता है?
यह शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया गया एक बैंक होता है, जो अपने ग्राहकों के जमा पैसे पर न तो ब्याज देता है और न ही ग्राहकों को दिए गए किसी कर्ज पर ब्याज लेता है, इस्लामिक बैंक पिछले दरवाजे से सूद लेते हैं। इस्लामिक बैंक अपने यहां जमा धन से अचल सम्पत्ति खरीदते हैं। मकान, दुकान, घर बनाने वाले भूखंडों आदि पर निवेश करते हैं। इस निवेश से मुनाफा है।
भारत में इस्लामिक बैंक की कब और कैसे उठी मांग ?
भारत में इस्लामिक बैंक को लेकर सुगबुगाहट यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन मुख्य वित्तीय सलाहकार रघुराम राजन के नेतृत्व में गठित समिति की एक सिफारिश से हुई। इस समिति ने अगस्त 2008 में आरबीआई को सिफारिश की थी कि वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए ब्याज मुक्त बैंकिंग व्यवस्था लागू की जाए। इसके बाद तो अनेक मुस्लिम नेता इस्लामिक बैंक की पैरवी करने लगे थे।
लेकिन तत्कालीन आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव ने इस्लामिक बैंक की परिकल्पना को भारतीय संविधान और रिजर्व बैंक के नियमों के विरुद्ध बताया था और इस सिफारिश को खारिज कर दिया था।