भोपाल। तीन चतुर्थ श्रेणी सरकारी कर्मचारियों को राज्य सरकार के जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाए गए 2 बच्चों के नियम का उल्लंघन करने का दोषी पाए जाने के बाद बर्खास्त कर दिया गया है। अपने बचाव में तीनों ने ही कहा कि उन्हें इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी।
तीनों दमोह की जिला अदालत में चपरासी के पद पर नियुक्त थे। तीनों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उनके खिलाफ एक साल तक विभागीय जांच चली। जांच में उन्हें मध्य प्रदेश सिविस सर्विसेज रूल्स 1961 की धारा 6 (6) का उल्लंघन करने का दोषा पाया गया। इसी तरह की कार्रवाई 11 अन्य कर्मचारियों के खिलाफ होने की संभावना है। ये 11 भी चपरासी ही हैं। बर्खास्त किए गए कर्मचारियों ने पूरे प्रदेश में इस तरह की जांच कराए जाने की मांग की है।
जांच करो सैकड़ों मिलेंगे..
बर्खास्त कर्मचारियों का कहना है, केवल हम ही क्यों? इस तरह की जांच पूरे प्रदेश में होने दीजिए और आपको पता चलेगा कि सैकड़ों सरकारी कर्मचारी इस नियम का उल्लंघन करने के दोषी हैं। तीनों कर्मचारी सोमवार को उच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील करने वाले हैं। साल 2000 में इस नियम के अंदर संशोधन कर अधिकतम 2 बच्चों का प्रावधान जोड़ा गया था।
नेताओं को रियायत क्यों?
बर्खास्त कर्मचारी कल्याण सिंह ठाकुर ने कहा, ऐसा ही एक कानून पंचायत प्रतिनिधियों पर भी लागू है लेकिन इसमें संशोधन कर दिया गया। 2005 में नेताओं के चुनाव लड़ने की योग्यता तय करने वाले नियमों में भी बदलाव हुआ। सजा हम जैसे गरीबों को ही क्यों? तीनों कर्मचारी सोमवार को उच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील करने वाले हैं।
31 जनवरी 2014 को तत्कालीन जिला जज वीपी श्रीवास्तव ने जिला अदालत में काम करने सभी कर्मचारियों के परिवार का ब्योरा पेश किए जाने का आदेश दिया था। इनमें 26 जनवरी 2011 के बाद पैदा हुए बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड भी दिए जाने की बात कही गई थी। दोषी पाए जाने के बाद तीनों कर्मचारियों को 19 दिसंबर 2015 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।