भोपाल। मप्र के शासकीय स्कूलों में छात्राओं को मिलने वाली साइकल के मामले में अफसरों ने घोटाले की जमावट कर ली है। अखबारों में लगातार प्रकाशित कराया जा रहा है कि छात्राओं को इस बार पैसे नहीं बल्कि साइकल मिलेंगी, परंतु इसके पीछे एक बड़ा घोटाला घटित होने जा रहा है।
पहले क्या होता था
अब से पहले तक छात्राओं के बैंक खाते में साइकल के पूरे पैसे जमा करा दिए जाते थे। फिर छात्राएं अपनी पसंद की साइकल खरीद लेतीं थीं। राजधानी में बैठे अफसरों का कहना है कि वो साइकल नहीं खरीदतीं थीं, बल्कि उनके पालक उनके खातों से पैसा निकालकर मिसयूज कर लेते थे, जबकि हितग्राहियों का कहना है कि वो शासन से प्राप्त राशि में और पैसे जोड़कर अच्छी क्वालिटी की साइकल ले लेते थे, ताकि वो लम्बा चले और काम आए।
अब क्या होगा
इस साल अधिकारियों ने ऐलान किया है कि छात्राओं को पैसे नहीं, सीधे साइकल दी जाएगी। जिससे किसी गड़बड़ी की संभावना ही ना रहे। अधिकारियों ने इसके लिए तैयारियां करने के निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
इसमें घोटाला कैसा
अब जरा इस जमावड़े को ध्यान से समझिए।
भोपाल में बैठे अधिकारियों के सामने साइकलों का प्रदर्शन होगा। अधिकारी उसमें से किसी एक उनके हिसाब से उत्तम क्वालिटी की साइकल का चयन करेंगे।
संबंधित कंपनी अपनी स्थानीय डीलरों को आदेशित करेगी और स्कूल के प्राचार्य अपने ही शहर में साइकलें प्राप्त कर, उनका भुगतान करेंगे।
इसमें क्या गलत है
गलत यह है कि साइकल का चयन भोपाल में होगा, जिसके बारे में प्राचार्य को पता ही नहीं चलेगा। भोपाल में बढ़िया साइकल दिखाई जाएगी, गांव में घटिया सप्लाई कर दी जाएगी। प्राचार्य को सिर्फ कंपनी का नाम मालूम होगा, डीलर का नाम मिल जाएगा। वो केवल भुगतान करेगा। उदाहरण के तौर पर 5000 रुपए में 2000 रुपए वाली साइकल सप्लाई हो जाएगी। किसी को पता भी नहीं चलेगा।
सवाल यह भी है कि जब साइकल का चयन भोपाल से किया जा रहा है तो खरीदी आदेश भी यहीं से जारी होने चाहिए। बिल भी यहीं लगने चाहिए और भुगतान भी भोपाल से होना चाहिए। परंतु इस योजना में ऐसा नहीं होगा। साइकल का चयन भोपाल से होगा। खरीदी आदेश गांव के स्कूल से जारी होगा। बिल भी वहीं लगेगा और भुगतान भी वहीं होगा। ऐसे हालात में बड़े स्तर की कमीशनखोरी की संभावना से कौन इंकार कर सकता है। जांच हुई तो फंसेगा प्राचार्य, जो केवल मौखिक आदेश का पालन करेगा।
तो सही क्या होना चाहिए
- सही यह होना चाहिए कि अधिकारी अपने विवेक से 2 या 3 कंपनियों के साइकल का चयन करें।
- चयनित साइकलों के मॉडल, उनका अधिकतम खुदरा मूल्य और मप्र शासन के लिए तय किया गया मूल्य सार्वजनिक किया जाए।
- छात्राओं के खाते में पैसे के बजाए एक टोकन भेजा जाए।
- टोकन लेकर छात्राएं संबंधित दुकानदार के पास जाएंगी। साइकल लेंगी और पेमेंट के बजाए एमआरएन जमा करा देंगी।
- पहले दिन जब वो अपनी साइकल से स्कूल आएंगी तो प्राचार्य एनओसी जारी कर देंगे।
- उनकी पावती के साथ संबंधित कंपनी पेमेंट के लिए बिल लगाएगी।
- मप्र शासन की ओर से उसे भुगतान हो जाएगा।
- अब जब प्रक्रिया में इतने सारे लोग शामिल होंगे। कंपनियां अधिकतम खुदरा मूल्य से कम कीमत पर साइकल विक्रय करेंगी तो स्वभाविक है, घोटाले की संभावना बहुत कम रह जाएगी। व्यापारी अतिरिक्त फायदे में से अधिकारियों को कमीशन बांटता है, अपने धंधे पर आंच आए तो अपने आप ईमानदार हो जाता है।