भोपाल। मप्र केबिनेट विस्तार में भले ही शिवराज सिंह की मर्जी चली हो परंतु मोदी केबिनेट में शिवराज सिंह को पूछा तक नहीं गया, उल्टा उनके विरोधी माने जाने नेताओं को शामिल कर लिया गया। राजनीति के पंडित इसे भविष्य का इशारा मान रहे हैं। शिवराज की तीसरी पारी शायद इसी उथल पुथल में चली जाएगी।
मोदी के मंत्रिमंडल में मध्यप्रदेश के तीन नेताओं का जगह मिली है। इनमे से दो राज्यसभा सांसद है जबकि एक लोकसभा सांसद। राज्यसभा सांसद एमजे अकबर का मप्र से कोई नाता नहीं है, बस वो मप्र कोटे से हैं। अनिल माधव दवे व लोकसभा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते दोनों शिवराज विरोधी माने जाते हैं।
फग्गन सिंह कुलस्ते पांचवी बार लोकसभा पहुंचे हैं। कुलस्ते 11वीं, 12वीं, 13वीं व 14 वीं लोकसभा में लगातार चुनकर गए थे। 16वीं लोकसभा के चुनाव जीतकर श्री कुलस्ते पांचवीं बार लोकसभा पहुंचे हैं। कुलस्ते प्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी नेताओं में से एक हैं लेकिन शिवराज सिंह ने उन्हे कभी महत्व नहीं दिया। कुलस्ते को मप्र में अजजा मोर्चा की कमान सौंपी गई थी, जबकि फ्रंटफुट पर खुद शिवराज सिंह दलितों की राजनीति कर रहे हैं। कुलस्ते को मिले वजन से शिवराज शक्तियों को नियंत्रित किया गया है।
अनिल माधव दवे भाजपा के नेता नहीं बल्कि संघ के स्वयंसेवक हैं। उन्हे संगठन का काम करना आता है परंतु जनता में उनकी कोई खास पहचान नहीं हैं। 2003 के चुनाव में दवे ने उमा भारती के लिए चुनाव प्रबंधन किया था। तब से दवे लाइम लाइट में हैं। सिंहस्थ में भी दवे सक्रिय रहे और संघ में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली। दवे को भाजपा का थिंकटैंक कहा जाता है परंतु शिवराज कतई नहीं चाहते कि दवे जैसे थिंकटैंक मप्र में मजबूती से काम करें। वो भाजपा नहीं ब्रांड शिवराज स्थापित करना चाहते हैं। दवे भाजपा को मजबूत करते हैं। इसलिए दोनों में मनभेद बने रहते हैं। उमा भारती से संपर्क के कारण भी शिवराज उन पर भरोसा नहीं करते। दवे को ताकत मिलना भी शिवराज केंप के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।