भोपाल। मप्र में गिरते शिक्षा के स्तर पर चर्चा अक्सर होती है परंतु माध्यमिक शिक्षा मंडल मप्र शासन, भोपाल में बैठे विशेषज्ञों की बेवकुफियों को समाप्त करने के लिए कभी कोई कार्यशाला नहीं हुई। हालात यह है कि परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामलों में माशिमं की दर्जनों खामियां सामने आ चुकीं हैं जो प्रमाणित करतीं हैं कि माशिंम में बैठे विशेषज्ञों को जोड़ना घटाना तक नहीं आता।
पिछले दिनों एक मामला प्रकाश में आया था जिसमें माशिमं ने 83 की जगह 33 नंबर दर्ज कर दिए। इसके चलते स्टूडेंट को मैरिट नहीं मिल सकी। वो कई दिनों तक अवसाद में रही। उसके माता पिता के पास रिवेल्युएशन फीस का पैसा नहीं था, लोगों ने मदद की तब कहीं जाकर सुधार हुआ।
ताजा मामला नीमच से आ रहा है। यहां जावद क्षेत्र के ग्राम बरखेड़ा कामलिया के किसान पुत्र प्रकाश पाटीदार को हाई स्कूल परीक्षा अंग्रेजी प्रश्नपत्र में 10 अंक कम प्राप्त हुए। क्योंकि माशिमं वालों ने मार्कशीट में 13 की जगह 3 नंबर जोड़ दिए थे। पूरे 10 नंबर माशिमं वाले गप कर गए।
सवाल यह है कि माशिमं में परीक्षा और मूल्यांकन के मामले में इस तरह के मामलों को सिर्फ गलतियां कहकर टाला नहीं जा सकता। यदि यह एकाध हो तो समझ में आता है। अब तक सैंकड़ों ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। तुर्रा तो देखिए माशिमं के द्वारा की गई गलती को सुधरवाने के लिए स्टूडेंट को फीस चुकानी पड़ती है। जबकि माशिमं पर मोटा जुर्माना लगना चाहिए जो स्टूडेंट को मिले। वैसे भी तनाव की कोई कीमत नहीं होती। संबंधित बेवकूफ कर्मचारी को भी तनाव दिया जाना चाहिए। उसे तत्काल सस्पेंड कर दिया जाना चाहिए।