जबलपुर। मप्र शिक्षा विभाग के अधिकारी केवल कर्मचारियों को परेशान करने की नीति पर काम कर रहे हैं। हाईकोर्ट में यदि सबसे ज्यादा विवाद किसी विभाग के हैं तो वो शिक्षा विभाग ही है। गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर मामलों में शिक्षा विभाग केस हार जाता है, बावजूद इसके ना तो अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है और ना ही पॉलिसी बदली जाती है। ताजा मामला समयमान वेतनमान का है। अधिकारियों ने जान बूझकर हिताग्रही कर्मचारी को परेशान किया। कर्मचारी को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए हाईकोर्ट तक जाना पड़ा। यहां शिक्षा विभाग हार गया, लेकिन सवाल यह है कि कर्मचारी जिस तनाव से गुजरा उसका क्या।
न्यायमूर्ति सुजय पॉल की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता रानी दुर्गावती कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला गढ़ा जबलपुर में कार्यरत सहायक ग्रेड-2 कंचन बर्मन की ओर से अधिवक्ता अनिरुद्घ पाण्डेय ने रखा। उन्होंने दलील दी कि 30 साल की सेवा अवधि पूरी होने पर तृतीय समयमान वेतनमान देने का शासकीय प्रावधान है। इसके बावजूद याचिककार्ता को उसके हक से वंचित रखा गया है। इसे लेकर वह कई बार विभागीय स्तर पर आवेदन-निवेदन कर चुकी है। इसके बावजूद स्थिति वही ढाक के तीन पात बनी रहने के कारण न्यायहित में हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी।
बहस के दौरान अवगत कराया गया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति 20 जनवरी 1982 को हुई थी। मध्यप्रदेश शासन के परिपत्र के मुताबिक 10 साल की सेवा के बाद प्रथम, 20 साल की सेवा के बाद द्वितीय और 30 साल की सेवा के बाद तृतीय समयमान वेतनमान मिलना चाहिए। इसके बावजूद संयुक्त संचालक लोक शिक्षण ने अब तक मांग पूरी नहीं की।