प्रभु पटेरिया। अभी कुछ दिन पहले ही की बात है मध्यप्रदेश बीजेपी का कोर ग्रुप बना था। उसमें सभी पूर्व मुख्यमंत्री शामिल किए गए थे सिर्फ बाबूलाल गौर और उमा भारती को छोड़ कर। उमा तो खैर अब उत्तरप्रदेश की हो गईं लेकिन गौर तो यहीं एमपी में थे । शिवराज सिंह सरकार के वरिष्ठतम मंत्री। कोर कमेटी में पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ दो वरिष्ठ मंत्री को रखने की परंपरा बीजेपी की है। दोनों ही क्राइटेरिया में फिट गौर साहब को कोर कमेटी में जगह नहीं मिली थी। वो संकेत थे। परिणाम 30 जून को सामने आया और गौर साहब को बड़े ही बेदर्द तरीके से कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 75 पार के उसी हथियार से, जिससे नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के सर्वमान्य नेता लालकृष्ण आडवाणी का शिकार किया था। तब इस राजनीतिक आखेट में आडवाणी के साथ खेत हुए थे मुरलीमनोहर जोशी। अब मध्यप्रदेश में गौर के साथ शिकार हुए कैबिनेट का एकमात्र सिख चेहरा सरताज सिंह।
लेकिन मिशन-2018 के लिए अपनी सेना का पुनर्गठन कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बिसात की यह बानगी भर है। शिवराज ने अपने नए मंत्रिमंडल के सदस्यों को विभाग बांटने में इससे भी ज्यादा चतुराई की है। पहली बार सभी राज्यमंत्रियों को स्वतंत्र प्रभार देकर सभी को एक प्लेटफार्म पर खड़ा कर दिया। क्या 13 साल के अनुभवी मंत्री और क्या नौसिखुए सभी एक बराबर। लेकिन राज्यमंत्रियों को जहां स्वतंत्र प्रभार वाले विभागों में खुल कर काम करने की स्वतंत्रता दी तो,उन्हें किसी न किसी वरिष्ठ मंत्री के साथ अटैच कर पुराने अनुभवी मंत्रियों को परेशान रखने का जतन भी कर दिया। अब राज्यमंत्रियों के सबसे ज्यादा मजे।अपने विभाग के वे अकेले मालिक और दूसरे मंत्रियों के काम के साझीदार।
इस विभाग वितरण से पहले शिवराज साफ कर चुके हैं कि सभी मंत्रियों का परफार्मेन्स ऑडिट होगा। उन्हें हर तीसरे माह अपने विभाग की परफार्मेन्स रिपोर्ट भी देनी होगी। मतलब मंत्री का रुतबा बरकरार रहेगा या नहीं इसका तिमाही इम्तिहान सभी को देना होगा।अब राज्यमंत्री ठहरे राज्यमंत्री मंत्री ने उनके साथ कामकाज और अधिकारों का बंटवारा ढंग से नहीं किया तो शिकायत।विभाग का परफार्मेन्स बिगड़ा तो ठीकरा मंत्री के सिर। लेकिन टेंशन बढ़ाने के लिए राज्यमंत्री का साथ बरकरार। जब पहली बार सरकार चलाने आ रहे लोगों को स्वतंत्र प्रभार वाले विभाग दिए गए हैं तो सीनियर मंत्रियों को भी अपने विभाग की इंडिपेंडेंट जिम्मेदारी क्यों नहीं दी ? ढाई साल से यही मंत्री दो से ज्यादा विभाग अकेले ही संभाल रहे थे। अचानक ही वो अब अकेले एक विभाग संभालने लायक नही रहे! 2003 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद सहकारिता को कांग्रेस मुक्त करने वाले गोपाल भार्गव की पसंद सहकारिता उनसे छीन ली गयी। भार्गव अब सामाजिक न्याय और निशक्त कल्याण के साथ उस पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री रह गए जिसका अप्रत्यक्ष नियंत्रण किसी और के पास है। एम्पावर कमेटियों से कसे इस विभाग के असली 'भगवान'अफसर ही हैं। तिस पर राज्यमंत्री भी साथ हैं। यशोधरा राजे सिंधिया को जिस खूबी के कारण 2013 में उद्योग विभाग दिया गया था, उस पर अफसरशाही की शिकवा शिकायतें भारी पड़ गईं। अब श्रीमन्त से बड़ा और प्रभावी विभाग उनकी मामीजी यानी माया सिंह के पास है। यशोधरा खेल , युवा कल्याण और धार्मिक धर्मस्व विभाग की मंत्री हैं तो माया सिंह उस नगरीय विकास विभाग की मंत्री जो सभी की पसंद था।शिक्षा विभाग में सख्ती दिखाना उमाशंकर गुप्ता को राजस्व तक ले आया। विजय शाह भी खाद्य विभाग से स्कूल शिक्षा तक जा पहुंचे। फायदे में वो मंत्री रहे जो मुख्यमंत्री के करीबी हैं। अपवाद हैं तो कुसुम महदेले, जिनकी कुर्सी भी बची और बड़ा विभाग भी। लेकिन हैप्पी वो भी नहीं जिनके विभाग बचे रह गए। खुश वो भी नहीं जिनके विभाग बदल गए। शायद इसीलिए वादा करने के बाद भी शिवराज हैप्पीनेस मंत्रालय अब तक नहीं बना पाए। हो सकता है खुशी मंत्रालय के लिए उन्हें अब तक कोई खुशमिजाज मंत्री न मिला हो!
विश्वास: क्या बनेंगे सहकारिता किंग !
पहली बार मंत्री बनने के साथ विश्वास सारंग को सहकारिता विभाग देकर मुख्यमंत्री ने नया प्रयोग किया है। विश्वास लघु वनोपज संघ के पहले निर्वाचित अध्यक्ष रहे हैं। तब इसी सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री दर्जा देना उचित नहीं समझा था। सहकारिता के अनुभव और युवा मोर्चा की प्रदेश भर में फैली टीम के दम पर विश्वास सहकारिता में बीजेपी का स्थायी आधार तैयार कर सकते हैं। उनसे पहले सहकारिता मंत्री रहे गोपाल भार्गव और गौरीशंकर बिसेन वो मुकाम हासिल नही कर पाए जो कांग्रेस के सहकारी नेताओं ने किया था। विश्वास के पास अवसर है कि वो कांग्रेस के सहकारिता पुरुष सुभाष यादव जैसा नाम और मुकाम हासिल करें।
लेखक श्री प्रभु पटेरिया Swaraj Express News Channel के Political Editor हैं।