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नईदिल्ली से आई खबरों के अनुसार बीजेपी और आरएसएस के बीच अब आरएसएस नेता सुरेश सोनी पुल का काम करेंगे। आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी आज सुर्खियों में इसलिए आ गए हैं क्योंकि देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार और संगठन में इनकी भूमिका अहम होने जा रही है। आरएसएस को सुरेश सोनी की जरूरत क्यों पड़ी है इसको जानने से पहले जानिए कि सरकार और संगठन में इनका दखल क्या होगा।
2014 तक सुरेश सोनी मप्र सरकार-संगठन और संघ में तालमेल का काम देख रहे थे लेकिन व्यापम घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया। साल भर से वो छुट्टी पर हैं। इस जगह पर कृष्ण गोपाल के नेतृत्व में एक टीम संघ, सरकार और संगठन में तालमेल का जिम्मा संभाल रही थी।
फिर याद आए सुरेश सोनी
अब बदलाव की जरूरत इसलिए महसूस हो रही है क्योंकि कहा जा रहा है कि मंत्रिमंडल फेरबदल में उन लोगों के कद कम कर दिये गये हैं जो जताने लगे कि वो आरएसएस के करीबी हैं। स्मृति ईरानी, सदानंद गौड़ा, वी के सिंह, महेश शर्मा जैसे मंत्रियों की छवि संघ से करीबी की है लेकिन इनके विभाग बदल दिये गये हैं। मंत्रिमंडल से हटाये गये रमाशंकर कठेरिया भी आरएसएस के करीबी माने जाते हैं। इसी के बाद आरएसएस में बदलाव की तैयारी शुरू हो गई है।
सालाना बैठक में होगी घोषणा
10 जुलाई से 15 जुलाई तक आरएसएस की सालाना बैठक में इस पर चर्चा होने के आसार हैं। वैसे ये तय है कि कृष्ण गोपाल को औपचारिक तौर पर नहीं हटाया जाएगा लेकिन सुरेश सोनी की वापसी के बाद उनके अधिकारों में कटौती भी तय है। सोनी को पीएम मोदी का करीबी भी माना जाता है। हालांकि आरएसएस ने बयान जारी करके कहा है कि यह एक नियमित सामान्य बैठक है। प्रांत प्रचारक बैठक में कोई प्रस्ताव या नीतिगत निर्णय नहीं होते हैं।